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Tuesday, April 7, 2020

कोरोना, तेरे नुकीले तीरों को हम भी देखेंगें (कविता).#coronapoem

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#coronapoem


परमस्नेही साहित्यान्वेषी  सुधीजनों,
आप शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के अपने यूट्यूब चैनल "marmagya net" से जुड़ चुके हैं। मैं ब्रजेंद्रनाथ आपको याद दिलाना चाहता हूँ, उस हिम प्रलय का जिसमें एकमात्र मनु बचे थे और उन्होंने श्रद्धा और इड़ा के साथ मिलकत मानव सभ्यता का निर्माण किया था। जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी की कुछ पंक्तियाँ:
"हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह, एक पुरुष, भींगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह।"
उस भयंकर संकटकाल में मनु ने आशा का त्याग नहीं किया और मानव सभ्यता को खड़ा किया। आज भी कोरोना विषाणु के कारण एक घोर संकट आया हुआ है।
कल हमने आशा का दिया जलाया था। आज हम जीत का बिगुल बजाने न रहे हैं: सुनें:

कोरोना, तेरे चल रहे नुकेले तीरों को
हम भी देखेंगें
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ज्वालामुखी के विस्फोटों से धरा विकम्पित
जल का था विस्तार, भूमि समाई उसमें।
गगन गूंजता, रही धरा डोलती पल पल,
क्षण क्षण गर्जन ध्वनि समाई उसमें।

मानव सभ्यता का निर्माण किया मनु ने
जब धरती ध्वस्त हुई थी हिम प्रलय में।
वनस्पतियों को चुन चुन प्रभावी बनाया,
जब प्रचंड जंतु भरे थे नगर निलय में।

ऐ कोरोना, तेरे तप्त तासीरों को
हम भी देखेंगें।
तेरे चल रहे नुकीले तीरों को
हम भी देखेंगें।

माना तेरे खूनी पंजों का प्रहार है जारी,
माना तेरे चुभते खंजर का प्रहार है जारी।
तुमने मानी नहीं हमारी कोई भी विनती,
बढ़ती रही धरा पर ताज़ा लाशों की गिनती।

तू है अदृश्य और घुस जाता है शरीर में,
तू स्वसन तंत्र को छिन्न भिन्न करता है।
तू छींकने खाँसने से बढ़ता ही जाता है,
तू शारीरिक शक्ति को विछिन्न करता है।

तेरे फैलते लंबी जंजीरों को
हम भी देखेंगे।
तेरे चल रहे नुकेले तीरों को
हम भी देखेंगें।

रक्तबीज - सा छलता अनगिन रूपों में,
समझ नहीं आता, कहाँ छिप जाता है?
तू है अति सूक्ष्म, दिखाई नहीं पड़ता है,
तू अंदर ही अंदर घात किये जाता है।

तू नहीं छोड़ता है चाहे वो हो राजा या रंक
तू मानवता का शत्रु , यह युग याद रखेगा।
विश्व, विष के प्रभाव से पड़ा हुआ भूलुंठित,
शव गिरने होंगें बंद, यह युग याद रखेगा।

तेरे घाव गंभीरों को
हम भी देखेंगें।
तेरे चल रहे नुकेले तीरों को
हम भी देखेंगें।

ढूढ़ लिए, कुछ ऐसे व्यक्ति, समूहों को,
जो मनुजता के दुश्मन बने फिरते हैं।
जिन्हें क्वारंटाइन में जाना नहीं पसंद,
तेरे वाहक बनकर विष वमन किया करते है।

हम है प्रबल, अटल इन झंझावातों में,
प्रहार झेलते रहते है, प्रचंड संघातों में।
एक मरेंगे, दस वीर समर में आ जूझेंगें,
मानव बंदी होगा नहीं सिरफिरे जामातों में।

तेरे टेढ़े तिरछे शोख
शमशीरों को हम भी देखेंगें।
तेरे चल रहे नुकेले
तीरों को हम भी देखेंगें।

©ब्रजेंद्रनाथ
पूरी कविता मेरी आवाज में मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर देखें और सुनें:
Link: https://youtu.be/krnYuoAkkdA

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