#BnmRachnaWorld
#poemspiritual#poemonshabari
विषय: शब्द आधारित सृजन
शब्द: आहट
समझ न सकी कैसे करूँ मैं स्वागत?
देखती अपनी जीर्ण शीर्ण कुटिया को,
समझ न सकी अपने तन की हालत ।
उसको सुध ना रही विह्वल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
जिनके लिए बुहारती रही वीथियों को
जिनके लिए हटाये पथ के शूलों को,
जिनके लिए चुने सुंदर सुंदर कलियाँ
जिनके लिए बिछाए पथ में फूलों को।
उन पाँवों की हलचल से चंचल हो गयी?
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
जिनके लिए रखती रही बैरों को चखकर,
स्वच्छ थालों में सुरक्षित और सजाए ।
जिनके लिए आंखें बरसती रही आस में,
जिनके लिए युग युग से वे बूंदे बरसाए।
अब वह बहती धार अविरल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
आज मतंग ऋषि की वाणी साकार हो रही,
प्रभु के आने की आहट है सारे जलथल में,
शबरी के राम आज पधारे हैं कुटिया के आंगन
आज भरा उल्लास अवनि और अम्बर तल में।
आंसुओं से धोती पाँव शबरी निश्चल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
#poemspiritual#poemonshabari
विषय: शब्द आधारित सृजन
शब्द: आहट
यह कविता मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के नीचे दिए गए लिंक पर सुनें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएँ:
https://youtu.be/YumN6rix6ds
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
आते हैं इस दुखियारी के द्वार प्रभु,।समझ न सकी कैसे करूँ मैं स्वागत?
देखती अपनी जीर्ण शीर्ण कुटिया को,
समझ न सकी अपने तन की हालत ।
उसको सुध ना रही विह्वल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
जिनके लिए बुहारती रही वीथियों को
जिनके लिए हटाये पथ के शूलों को,
जिनके लिए चुने सुंदर सुंदर कलियाँ
जिनके लिए बिछाए पथ में फूलों को।
उन पाँवों की हलचल से चंचल हो गयी?
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
जिनके लिए रखती रही बैरों को चखकर,
स्वच्छ थालों में सुरक्षित और सजाए ।
जिनके लिए आंखें बरसती रही आस में,
जिनके लिए युग युग से वे बूंदे बरसाए।
अब वह बहती धार अविरल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
आज मतंग ऋषि की वाणी साकार हो रही,
प्रभु के आने की आहट है सारे जलथल में,
शबरी के राम आज पधारे हैं कुटिया के आंगन
आज भरा उल्लास अवनि और अम्बर तल में।
आंसुओं से धोती पाँव शबरी निश्चल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
No comments:
Post a Comment