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Friday, July 3, 2020

शृंगार के छः छंद (कविता)

#BnmRachnaWorld
#romanticpoem

















श्रृंगार के छः छंद

डूबती, उतराती है देह नाव पर,
मदमाती, बलखाती जाती उस पार है।
श्रृंगार सभी मौन, आवरण हुए गौण,
यौवन भार अपार, बंध - मुक्त संसार है।

उठती गिरती साँसों से एक छन्द लिखें।
ओठों के मधु - रस से कोई बंद लिखें।
तेरी पलकों के नींदों से, उनींदे पलों को,
नेह निमंत्रण देकर, एक निबंध लिखें।

तू उद्दीप्त यौवन का वेगवान प्रवाह!
ले चलूँ , तटिनी की धारा बन जाऊं।
उज्जवल, धवल सी  फेनिल बूँदें बन,
लिपटूँ बाहों में, किनारा बन जाऊं।

नदी ज्यों उफन रही,  किनारों को तोड़ती,
काष्ठ - पिंड - सा बहा, धारा के बहाव में।
आवरण हुए गौण,  सांसें हो गयी मौन?
उन्मत्त आचरण ज्यों मदिरा के प्रभाव में।

छा जा मुझपर, ज्यों बादल पर्वत पर,
मैं हूँ तुम्हारा वेग, तू वेगवती धारा।
तोड़कर बांधों को तभी तो बहेंगे हम,
प्लावित कर लेंगें, जीवन अपना सारा।

देह तेरी उल्लसित, उत्कंठित, आलोड़ित,
कम्पित -गात, औ' मुदित हास आनन पर।
यामिनी है जाग रही, सो गए विहग सारे।
आँखों में नींद नहीं, ओठों के कम्पन पर,

ओठों को रखने दो, घोलने दो अमृत - रस।
मन की पाखी उड़ी, थोड़ा तो बहकने दो।
बाहों  में समेटने दो, खोल दो बाहों को,
रात की रानी को रात भर महकने दो। 

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

2 comments:

Sweta sinha said...

वाह बेहतरीन छंद है सारे।
बहुत सुंदर शब्द संयोजन।

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया स्वेता सिन्हा जी, आपके सकारात्मक उदगारों से अभिभूत हूँ। आप जैसी सुधी साहित्यान्वेषी ही ऐसी सुंदर और उतसाहवर्धक टिप्पणी दे सकती हैं। आपका हृदय तल से आभार!

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