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Thursday, July 30, 2020

बसाउंगी हिय के मधुवन में (कविता) #romantic

#BnmRachnaWorld
#romantic poem




















बसाउंगी हिय के मधुवन में
शृंगार के गीत (कविता)

अलसाया तन, बौराया मन,
कल्पना का नहीं ओर छोर है।
कोयल गा रही मीठी - सी धुन,
बाग में आया, अमवां का बौर है।

वासंती रंग फ़ैल गया यहां - वहाँ,
लहक गया, दहक गया पलाश वन।
आँखें निहारती चौखट पर क्षण - क्षण
आएंगे साजन और होगा मिलन।

फाग का राग बन आ गई होली भी,
अब तो घर आ जा मेरे सजन।
बयार भी चुभ रही काँटा बन,
मन हुआ बावरा, बिसर गया तन।

आँखे थी टकटकी लगाए हुए,
पड़ती रही ढोलक पर थाप पर थाप।
चुनरी भींगो गयी कोई सहेली मेरी,
पर न मिट पाया मन का संताप।

सावन भी आ गया बैरन बन,
बादल घिर आये नीले गगन में,
आयी नहीं नेह की एक पाती,
जल रिशते रहे कोरे नैनन में।

चैन आएगा होगी दस्तक जब,
आने की, सूने इस आंगन में।
सुध बुध खोकर खूब सताऊंगी
फिर बसाऊंगी हिय के मधुवन में।

@ब्रजेंद्रनाथ

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