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Saturday, March 21, 2020

कोरोना वायरस (विषाणु) के फायदे (हास्य व्यंग्य)

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कोरोना वायरस (विषाणु) के फायदे
(हास्य व्यंग्य)
कोरोना का कहर चीन से लेकर सारे विश्व में व्याप्त हो रहा है। इसके कुछ फायदे भी देखने में आ रहे हैं। जिन आदतों को हम भूल चुके थे या छोड़ चुके थे, उसे पुनः अपनाने की ओर अग्रसर हो रहे है।
जिनसे दोस्त समझकर मिलाते थे हाथ,
उन्हीं को करते हैं 'नमस्ते' जोड़कर हाथ।
इस विषाणु की उत्पत्ति भले ही चीन में हुई हो, परंतु अभी जापान, दक्षिण कोरिया और योरोपीय देशों, खासकर इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी में फैलते - फूलते हुए, अमेरिका में पैर पसारकर ईरान, टर्की से होते हुए भारत में दाखिल हो चुका है।
मैंने चचा से पूछा, "चचा, मालूम है कोरोना नाम का विषाणु भारत में आ गया है और लोगों को शिकार बना रहा है।"
चचा हँसे और उनकी हँसी से हमें लगा कि इस वक्तव्य का वे उपहास कर रहे हैं।
" बबुआ, कोरोना के आने से यहाँ भारत में क्या होगा? यहॉं तो पहले से ही भायरसों की भरमार है। हमलोगों को भायरसों के साथ रहने का बड़ा लंबा अनुभव है। कोरोना हमारा क्या बिगड़ लेगा?"
"चचा, ऐसा मत कहिए। जब पकड़ लेता है, तो समझिए जकड़ लेता है। कितना भी छुड़ाइये, छुड़ाया नहीं जा सकता। और चचा, बूढ़े लोगों से इसे खास प्यार होता है।"
"अरे बबुआ यह हमको क्या पकड़ेगा? हम सुबह में नेति-धोती करते हैं।"
"आप किस नीति की बात कर रहे हैं? सरकार ने अपनी नीति साफ - साफ जनहित में जारी कर दी है।"
"हम नीति नहीं, नेति की बात कर रहे हैं। तू लोग नया जमाना के बबुआ लोग है न। नेति कहाँ से जानोगे?"
"आप बताइएगा नहीं, तो हम जानेंगे कैसे?"
"सुबह-सुबह शौचादि से निवृत्त होने के बाद खाली पेट नासिका के एक छिद्र से जल डालकर दूसरे नासिका से प्रवाहित करने की क्रिया को नेति कहते हैं।"
"चचा, आप क्या कहते है? नाक का पानी अगर कान में चला गया, तो जीवन भर के बहरे हो जाएंगे। आप यही चाहते हैं क्या? कोरोना के भगाने के चक्कर में मुझे बहरा नहीं होना।"
"नहीं, नहीं, हम तुमको करने के लिए नहीं कह रहे हैं।"
"चचा, करेंगें नहीं, तो होगा कैसे? ये तो बाबा रामदेव भी कहते हैं।"
"इसे किसी जानकार की देखरेख में ही करना चाहिए। हम अभी करने के लिए नहीं कह रहे हैं। पर इससे सारी सर्दी, बलगम सब दूर हो जाएगा, और कोरोना साला दुम दबाकर भाग जाएगा।"
"अच्छा चचा, और आप कोरोना को भगाने के लिए क्या-क्या करते हैं या क्या-क्या करना चाहेंगे और दूसरों को क्या करने की सलाह देते हैं?"
"बस मस्त रहो, व्यस्त रहो, और सबों से मेलजोल रखो।"
"क्या बात करते हैं, चचा? सरकार सबों से दूर रहने को कहती है। आप कहते है, मेलजोल बढ़ाकर मिलते-जुलते रहो।"
"मेलजोल नहीं रखोगे तो शाम को अकेले चिलम फूंकने में थोड़े ही मजा आएगा?"
"क्या कह रहे है, चचा? ये चिलम फूंकने से आपका क्या मतलब है?"
"तू लोग नया जमाना के बबुआ लोग है न। तू लोग के चिलम समझ में नहीं आएगा।"
"आप समझाएगा नहीं, तो कैसे समझ में आएगा?"
"चिलम यानि गांजे की कली।
जो न पिएं गांजे की कली,
उस लड़का से लड़की भली।"
"चचा, आप गांजे की कली पीकर, नेति-धोती का सब अच्छा प्रभाव धुआँ में उड़ा दे रहे हैं।"
"तू लोग नया जमाना के बबुआ है न। तू लोग नहीं समझेगा। गाँजे का धुआँ जब अंदर जाता है न, तब अंदर का सब भायरस भरभरा कर भाग जाता है। अब अगर कोरोना कोई वीमारी का दीवार शरीर के अंदर बनाएगा भी, तो वह दीवार भड़भड़ा कर भहरा जाएगा।"
"वाह, चचा! आपका जवाब नहीं। आप तो सारा सिद्धांत बदल दिए।"
चचा बोले, "तब तुहु बतावs। का करेके चाहीं।"
मैंने चचा को सरकार की ओर से संक्रमण के रोकथाम के लिए जारी सारे एहतियातों के बारे में संक्षेप में बताया।
"चचा, आपको घर में रहना चाहिए। घर में भी हर दो घंटे पर साबुन से 20 सेकंड तक हाथ धोते रहना चाहिए। बाहर निकलना जरूरी हो तभी निकलें। बाहर अगर निकलते हैं, तो मास्क यानि मुखौटा पहनकर निकलिये।
लोगों से 2 मीटर की दूरी बनाकर रखिये। घर आते ही साबुन से हाथ धोइये।"
मैं तो कहता ही जा रहा था कि चचा ने टोका, "अच्छा, बबुआ ई बताओ कि जब मुखौटा पहन लेगा, तब खैनी या पान खाकर थूकेगा कैसे? गलती से अगर मुखौटे में थूक दिया, तो पूरा का पूरा पीक अपने चेहरे पर आ जायेगा।"
मुझे बहुत जोरों की हँसी आई, पर हंसी को जबरन रोकते हुए मैंने पूछा, "चचा, साबुन से हाथ धोने में कोई दिक्कत तो नहीं है?"
चचा गम्भीर थे। चेहरे पर विशेष गंभीरता ओढ़ते हुए और प्रश्नवाचक ढंग से मोड़ते हुए बोले, "जब घर में रहते हुए भी हर दो घंटे में हाथ धोते रहना है, तो हम अपना बेड भी बॉथरूम में लगा लेते हैं। तू लोग नया जमाना के बबुआ लोग है न। बात तो तुम्हारा मानना ही पड़ेगा।"
मैं क्या कहता? मैं प्रतिउत्तर विहीन हो गया। चचा जैसे लोग हमारे चारों तरफ फैले हैं। इनकी सोच को कोई बदल नहीं सकता।
मैं अपनी बात कहकर और चचा की बातों से निराश होकर सोचता जा रहा था, कोरोना के द्वारा लाये गए बदलावों पर। मॉल, रेस्त्रां, मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा, ऑफिस, स्कूल, कॉलेज सब बंद, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, एयर पोर्ट में कम आवाजाही। क्या परिवर्तन है!!
एक महाशय जो हाल है में अत्यावश्यक कार्य से रेल की द्वितीय श्रेणी ए सी कोच में यात्रा किये थे, बता रहे थे, "रेल की ए सी बोगी में चढ़ा, तो देखा कि कोई पर्दा नहीं है। खिड़की के शीशे पर भी नहीं। प्रवेश द्वार पर लिखा था, कंबल मांगने पर ही मिलेगा, ए सी का तापक्रम 25-26 डिग्री से. रखा जा रहा है। मैं तो उतरने लगा था, कि शायद गलत डिब्बे में चढ़ गया हूँ। उतरते हुए एक बैठे हुए जनाब से पूछा, क्या यही ए सी 3 है? उसने कहा, "हाँ भाऊ यही ए सी 3 है। कोरोना के बढ़ते प्रभाव का परिणाम है। मैं अपनी सीट पर स्थित हुआ, फिर भी व्यवस्थित नहीं हो पा रहा था। लग रहा था कि किसी निर्वसन निलय में निठल्ले की तरह बिठा दिया गया हूँ। ट्रेन चली तो ठीक ही चली। यात्रियों की संख्या कम थी। रात्रि में तो प्रकाश बंद कर सो गए। दिया गया चादर ही काफी था। कम्बल की जरूरत नहीं पड़ी। पर सुबह में जहाँ ट्रेन में यात्रा करते हुए कभी भी आठ बजे से पहले नहीं उठते थे, खिड़की के शीशे पर पर्दा नहीं होने की वजह से आज सूर्योदय होते ही सूर्य की किरणें सीधे डिब्बे में निर्बाध प्रवेश कर रही थी, जैसे कह रही हों सुबह हो गयी, उठो और खाली पेट कपाल भाती, अनुलोम विलोम करना शुरु करो, कोरोना को भगाना है न।"
उनकी रेल यात्रा का विवरण विस्तार ग्रहण कर ही रहा था, कि मैंने अत्यावश्यक कार्य का बहाना कर उनसे अपना पिंड छुड़ाया।
और भी सकारात्मक परिवर्तन साफ दृष्टिगत हो रहे हैं। स्कूल कॉलेज बंद हैं। इसलिए बसें नहीं चल रही हैं। बहुत सारी प्राइवेट संस्थाओं और फर्मों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा है। तो उन कंपनियों की बसें और एम्प्लाइज की कारें भी सड़कों पर नहीं हैं। इसतरह सड़क पर गाड़ियों की भीड़भाड़ कम होने से गाड़ियों के कारण प्रदूषण स्तर बिल्कुल नीचे आ गया है और हवा गुणवत्तापूर्ण हो गई है।
यह भी देखा जा रहा है कि स्टेशन, मेट्रो, ट्रेनों के अंदर ,एयरपोर्ट लाउंज और अन्य सार्वजनिक स्थानों का विशेष प्रस्वच्छीकरण (सैनीटाईजेशन) किया जा रहा है। हमलोग जब डरे हुए होते हैं, तो कितना अच्छा काम करते हैं, इसका इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता है। पर ये सब सकारात्मक परिवर्तन ऊपर से भले दिख रहे हों, पर हैं तो कोरोना के नकारात्मक फैलाव को रोके जाने से पैदा होने वाले। इसलिए इसे स्थायी नहीं कहा जा सकता।
मैं घर की तरफ लौट ही रह था कि चचा से फिर भेंट हो गयी। मुझे लगा जैसे चचा छुप छुपाकर, नज़रें बचाकर निकलना चाह रहे हों। ऐसे में मैं भला टोके बिना कैसे रह सकता था, "क्यों चचा जी कहाँ से आ रहे हैं और नजरें बचाकर क्यों निकलना चाह रहे हैं?"
"अरे, नहीं बबुआ। यही जरा गुप्ता जी के यहाँ गए हुए थे।"
"क्या हुआ? गुप्ता चचा ठीक तो हैं? उनके लड़के की तो हाल ही बड़ी धूमधाम से शादी हुई थी।"
"हाँ, ठीक ही हैं।" कहकर चचा कुछ छिपाते हुए निकलना चाह रहे थे। मैं तो उनकी इस चेष्टा को ताड़ गया।
"चचा, मुझे लगता है कि आप कुछ छुपा रहे हैं?" मैंने प्रश्न दागते हुए जैसे चचा के अंदर के चोर को रंगे हाथ पकड़ लिया हो।
"तुम बहुत तंग करते हो, बबुआ।"
"हाँ चचा, हम नए जमाने के बबुआ हैं न, ऐसे छोड़ने वाले में से नहीं हैं।" चचा का डायलॉग चचा पर ही झाड़ते हुए मैने अल्टीमेटम दे दिया।
चचा को रहस्य पर से पर्दा उठाना ही पड़ा।
तो सुनो, "गुप्ता जी का लड़का फरवरी में शादी के बाद करीब एक महीने के लिए हनीमून मनाने इटली गया था। अभी वह घर आने वाला था। मैं उनके यहाँ यही पता लगाने गया हुआ था कि आया या नहीं। इटली में तो यह कोरोना भयंकर रूप में फैल गयी है।"
इसके बाद चचा चुप हो गए। मैंने उन्हें टमटम के अड़ गए टट्टू के कोचवान की तरह धकेलते हुए पूछा, "चचा, आगे कहिए मैं सुन रहा हूँ।"
इसके बाद चचा ने रुक रुक कर कहा, "उनके यहाँ तो मातम छाया है। बेटा बहु दोनों को एयरपोर्ट से ही एम्बुलेंस में डालकर दूर के अस्पताल में रखा गया है। उनकी पूरी जाँच होने पर 14 दिनों बाद ही छोड़ा जाएगा।"
"इसमें मातम की कोई बात नहीं है। वे एक संक्रमित देश से आये हैं। इसलिए उनकी पूरी जाँच कर उनके संक्रमण मुक्त हो जाने पर ही उन्हें घर आने दिया जाएगा, ताकि वे समाज में जाकर संक्रमण फैलाने वाले कारक न बन जाँय।"
जब चचा ने चुपचाप हामी भरी, तब मैंने एहतियात के सारे नियम उन्हें फिर से उन्हीं के मुँह से कहलवाए।
फिर मैंने कहा, "चचा, अब कोरोना को रोकने के सारे नियम अपनाएंगे या नहीं?"
उन्होंने धीरे से कहा, "हाँ।"
मैंने जोर देकर कहा, "जोर से बोलिये, हाँ।।।।"
उन्होंने कहा "हाँ।।।।"
मैंने कहा "आज से गाँजा नहीं पीजियेगा? जोर से बोलिये हाँ।।।"
उन्होंने हल्के से कहा, "हाँ।" और जाने लगे।
मैने कहा, "चचा, हम नए जमाने के बबुआ हैं, ऐसे छोड़ने वाले नहीं हैं, बिना हाँ कहलवाए।"
वे मुस्कराते हुए निकल लिए।
©ब्रजेंद्रनाथ









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