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https://youtu.be/diIk5UQTOnw
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ
मैं हूँ एक झोंका हवा का,
गंध लेके बिखरता गया।
मैं हूँ एक ज्योति दिया का
पुंज जिसका पसरता गया।
आंधियों को बाहों में लेकर
तूफानों के बीच में पला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
अपने सरल व्यवहार पर,
अपने सहज विचार पर।
अपने को कितना सताया
अपने ही निश्छल आचार पर।
मैं अपनों द्वारा पग पग पर
सूक्ष्म प्रतिघातों से छला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
मैं मिट्टी में मिलता रहा हूँ,
मैं उर्वरक जैसा घिसा हूँ।
सृजन किये अन्न सबके लिए,
आँटा बनने में फिर भी पिसा हूँ।
दूसरों को देता रहा जीवन
अपनी आग में मैं ही जला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
खोजता रहा कहीं सुकुमार,
वृन्तों पर फूलों की बहार।
मधुरिकाओं के मधु संचयन में,
मदनोत्सव में छाया श्रृंगार।
राही चल, नजर न टिक जाए
लोग कहने लगेंगे, मैं मनचला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
खुश हूँ उस नींव में, जिसकी
गहराई पर टिका हुआ कंगूरा है।
वह पत्थर बन सहता हूँ भार
जिससे चमकता मुकुट का हीरा है।
मुझसे ही प्राचीर यह सुरक्षित
मैं ही अभेद्य, सुदृढ़ किला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
ढूढने को कुछ - कुछ नया
मैं रहता सदा व्यग्र हूँ।
इस नभ मंडल में गतिमान
मैं ही एक तारा समग्र हूँ।
उल्कापिंडों के टकराव के बाद
निर्माण का एक सिलसिला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
©ब्रजेन्द्रनाथ
16 comments:
बहुत सारगर्भित रचना।
आ डॉ रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" सर, आपके सराहना के शब्द मेरे लिए पुरस्कार की तरह हैं। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को "समय व्यतीत करने के लिए" (चर्चा अंक-3808) पर भी होगी।
--
श्री गणेशोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आदरणीय डॉ रूपचंद शास्त्री "मयंक" सर,👏 नमस्ते! आपने मेरी इस रचना का चयन "समय व्यतीत करने के लिए" चर्चा अंक 3808 के लिए चयनित किया है, इसके लिए हृदय तल से आभार व्यक्त कडता हूँ। सादर!--
सुन्दर
आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी, आपके उत्साहवर्धन से सृजन के लिए नई प्रेरणा मिलती है। ह्रदय तल से आभार ! -- ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत ही गहन एवं उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
बेहद खूबसूरत भावों से सजा बहुत ही उत्कृष्ट सृजन सर!
आदरणीया मीना भारद्वाज जी, आपकी सराहना के शब्द मेरे सृजन के लिए पुरस्कार की तरह हैं। हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
आदरणीया साधना वैद्य जी, आपके सराहना के शब्दों से अभिभूत हूँ। हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
दूसरों को देता रहा जीवन
अपनी आग में मैं ही जला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
एक-ना-एक दिन खुद की भी तलाश करनी भी चाहिए। बहुत खूब, लाज़बाब सृजन सर ,सादर नमन
आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, आपके सराहना के शब्द मेरे लिए मार्गदर्शन की तरह हैं। मेरी इस रचना को मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर मेरी आवाज में अवश्य सुनें:
https://youtu.be/diIk5UQTOnw
आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
बेहद सुंदर रचना
आदरणीया भारती जी, नमस्ते! आपकी सराहना के शब्द मेरे सृजन की दिशा के लिए आश्वस्ति प्रदान करते हैं। हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
दूसरों को देता रहा जीवन
अपनी आग में मैं ही जला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।
बहुत ही सुंदर सृजन,ब्रजेंद्रनाथ जी। जीवन के किसी मोड़ पर इंसान के मन में यह सवाल जरूर आता है।
आदरणीया ज्योति जी, नमस्ते! आपके उत्साहवर्धक उदगारों से अभिभूत हूँ। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
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