#BnmRachnaWorld
27-12-2018 की शाम मेरे लिए खास बन गयी जब मैंने हिन्दी साहित्य और हिन्दी काव्य के देदीप्यमान हस्ताक्षर , अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री आदरणीय डा संजय पंकज जी को अपनी कार में लेकर आदरणीया मन्जू ठाकुर जी के आदित्यपुर एस टाइप मोड़ स्थित निवास स्थान पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विशेष बैठक सह लिटि पार्टी सह काव्य गोष्ठी के लिये लेकर पहुँचा। वहाँ आ शैलेन्द्र पाण्डेय शैल जी की अध्यक्षता और अभय सावंत तथा हुलास के संस्थापक आ चावला जी की विशिष्ट उपस्थिति रही। आ मन्जू ठाकुर जी के आतिथ्य ने सबों को अभिभूत कर दिया। बैठक में आ डा संजय पंकज जी ने संगठन के उद्देश्यों और आगे के रोड मैप को रेखांकित करते हुए, झारसुगुड़ा में होने वाले सम्मेलन में भाग लेने का आहवान किया। इसी अवसर पर मैने भी अपनी रचना
"एकलव्य कह रहा,,," का पाठ किया। उसकी कुछ पन्क्तियाँ मैं नीचे दे रहा हूँ।
इसी अवसर पर मैने डा संजय पंकज जी को अपनी पुस्तक "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" भेंट की। उसी समय की कुछ तस्वीरें यहाँ पर देते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है।
कविता की कुछ पंक्तियाँ:
मुक्त छन्द--------------------
एकलब्य कह रहा,
अपने गुरु से:
मैं समझता हूँ
उस गुरु की वेदना को,
अंतर्द्वंदों में छलनी होती
टूटते सिद्धान्तों और आचार संहिताओं की
विवशताओं से निर्धारित होती
जीवन यापन की परिकल्पना को।
जिस गुरु को अपनी ही संतान के लिए,
आंटे के घोल को रंग दे सफ़ेद
आभास देना पड़ा हो दुग्धपान के लिए।
जिस गुरु को सर्वश्रेष्ठ धनुर्विद्या में
निष्णात होने के उपरांत भी,
अपनी संतान को पिलाने को दूध,
मांगनी पड़ी हो अपने ही परम मित्र से,
कम - से - कम एक गाय की भिक्षा।
जिसे अपमान का दंश
विवशताओं के विषदंत
के बीच देनी पड़ी हो
परिवार के पालन की घोर परीक्षा।
उस गुरु के दरबारी गुरु
में बदल जाने में बहुत कुछ
भीतर - भीतर मरा है।
बहुत कुछ भीतर- भीतर
मारना पड़ा है।
×××××××××
पूरी कविता इस लिन्क पर पढें
marmagyanet.blogspot.com/2018/09/blog-post.html?m=1
27-12-2018 की शाम मेरे लिए खास बन गयी जब मैंने हिन्दी साहित्य और हिन्दी काव्य के देदीप्यमान हस्ताक्षर , अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री आदरणीय डा संजय पंकज जी को अपनी कार में लेकर आदरणीया मन्जू ठाकुर जी के आदित्यपुर एस टाइप मोड़ स्थित निवास स्थान पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विशेष बैठक सह लिटि पार्टी सह काव्य गोष्ठी के लिये लेकर पहुँचा। वहाँ आ शैलेन्द्र पाण्डेय शैल जी की अध्यक्षता और अभय सावंत तथा हुलास के संस्थापक आ चावला जी की विशिष्ट उपस्थिति रही। आ मन्जू ठाकुर जी के आतिथ्य ने सबों को अभिभूत कर दिया। बैठक में आ डा संजय पंकज जी ने संगठन के उद्देश्यों और आगे के रोड मैप को रेखांकित करते हुए, झारसुगुड़ा में होने वाले सम्मेलन में भाग लेने का आहवान किया। इसी अवसर पर मैने भी अपनी रचना
"एकलव्य कह रहा,,," का पाठ किया। उसकी कुछ पन्क्तियाँ मैं नीचे दे रहा हूँ।
इसी अवसर पर मैने डा संजय पंकज जी को अपनी पुस्तक "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" भेंट की। उसी समय की कुछ तस्वीरें यहाँ पर देते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है।
कविता की कुछ पंक्तियाँ:
मुक्त छन्द--------------------
एकलब्य कह रहा,
अपने गुरु से:
मैं समझता हूँ
उस गुरु की वेदना को,
अंतर्द्वंदों में छलनी होती
टूटते सिद्धान्तों और आचार संहिताओं की
विवशताओं से निर्धारित होती
जीवन यापन की परिकल्पना को।
जिस गुरु को अपनी ही संतान के लिए,
आंटे के घोल को रंग दे सफ़ेद
आभास देना पड़ा हो दुग्धपान के लिए।
जिस गुरु को सर्वश्रेष्ठ धनुर्विद्या में
निष्णात होने के उपरांत भी,
अपनी संतान को पिलाने को दूध,
मांगनी पड़ी हो अपने ही परम मित्र से,
कम - से - कम एक गाय की भिक्षा।
जिसे अपमान का दंश
विवशताओं के विषदंत
के बीच देनी पड़ी हो
परिवार के पालन की घोर परीक्षा।
उस गुरु के दरबारी गुरु
में बदल जाने में बहुत कुछ
भीतर - भीतर मरा है।
बहुत कुछ भीतर- भीतर
मारना पड़ा है।
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