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Wednesday, May 6, 2020

घर से चुपचाप निकल (कविता) बुद्ध पूर्णिमा पर

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मिटाने को संताप निकल
घर से चुपचाप निकल
दबाकर अपने पदचाप निकल,
अलख जगाने को मेरे मन,
मिटाने को संताप निकल।
गलियों को देख जहां
सोये है लोग सताए जाकर।
उनके लिए उम्मीदों के छत का
तू एक वितान खड़ा कर।
तू सूरज का एक कतरा
लाने को रवि ताप निकल।
अलख जगाने को मेरे मन
मिटाने को संताप निकल।।      
कोई नारा नहीं जो बदल दे
सूरत आज और कल में।
मुठ्ठियों को भींच, छलकाओ,
अमृत कलश जल थल  में।
सिसकियों में सोते हैं, उनके
मिटाने को विलाप निकल।
अलख जगाने को मेरे मन
मिटाने को संताप निकल।
जो बीमार सा चाँद दिखे
तो तू लेकर उपचार चलो।
जंगल में जब दावानल हो,
तू लेकर जल संचार चलो।
लेते हैं जो छीन निवाले
बन्द करने उनके क्रिया कलाप चल।
अलख जगाने को मेरे मन,
मिटाने को संताप निकल।
भेद डालकर अपनो में
जो विग्रह करवाते  है,
यहां लड़ाते, वहां भिड़ाते,
खून का प्यासा  बनाते हैं।
वहां प्रेम का विरवा रोपें,
करवाने को मिलाप चल।
अलख जगाने को मेरे मन
मिटाने को संताप निकल।
©ब्रजेंद्रनाथ
मेरी यह कविता मेरी आवाज में यूट्यूब चैनल marmagyanet के इस लिंक पर:
https://youtu.be/Bud394vqGDw

18 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

सामयिक प्रस्तुति हेतु आभार

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया अनिता सैनी जी, मेरी इस रचना को कल 09-05-200 के चर्चा मंच के लिए चयनित करने हेतु हार्दिक आभार! मैं उस चर्चा में अवश्य भाग लूँगा!--ब्रजेंद्रनाथ

जयकृष्ण राय तुषार said...

अच्छी कविता |

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत अच्छी कविता

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत अच्छी कविता

akhilesh shukla said...

आदरणीय नमस्बकार ,
बहुत ही सुंदर रचना " तु खड़ा कर एक वितान" उत्कृष्ट शब्द संग्रह

Akhilesh shukla said...

आदरणीय नमस्बकार ,
बहुत ही सुंदर रचना " तु खड़ा कर एक वितान" उत्कृष्ट शब्द संग्रह

Akhilesh shukla said...

सादर नमस्कार , बहुत ही सुंदर रचना है आपकी ।

Kamini Sinha said...

वहां प्रेम का विरवा रोपें,
करवाने को मिलाप चल।
अलख जगाने को मेरे मन
मिटाने को संताप निकल।

बेहतरीन सृजन ,सादर नमस्कार आपको

Book River Press said...

Nice Line, Keep writing
Book Rivers

Sudha Devrani said...

बहुत हु सुन्दर सृजन।
वाह!!!

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय सुधा देवरानी जी, आपके उत्साहवर्धक विचारों से मुझे नवीन सृजन की प्रेरणा मिलती हैं। ह्रदय तल से आभार !--ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आ Book River Press, आपकी सकारात्मक टिप्पणी से मुझे सृजन की ऊर्जा मिलती है। सादर आभार !--ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, मेरी रचना पर आपके उत्साहवर्धक विचार मेरे लिए पुरस्कार की तरह है। ऐसी टिप्पणी कोई सुधी साहित्यान्वेषी ही कर सकती है। सादर आभार !--ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय अखिलेश जी, आपके उत्साहवर्धक विचार मुझे ऊर्जस्वित करते है। सादर आभार ! -- ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय जयकृष्ण रे तुषार जी, आपके सकारात्मक विचारों द्वारा अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार ! --ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आ गगन शर्मा जी, रचना पर सार्थक और सकारात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ! -- ब्रजेन्द्र नाथ

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