#BnmRachnaWorld
#poemonfather
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है
वह चिलचिलाती धूप सहता है,
वह मौसम की मार सहता है।
तूफानों का बिगड़ा रूप सहता है
वह बताश, बयार सहता है।
मजबूत अंगद का पाँव होता है।
पिता बरगद की छाँव होता है।
वह परिवार के लिए ही जीता है।
पिता सब फरमाइशें पूरी करता है
परिवार के लिए हर गम पीता है।
सब कुछ करता, जो जरूरी होता है।
पिता न जाने कहाँ कहाँ होता है,
पिता हमारा सारा जहाँ होता है।
पिता को मैंने हंसते ही देखा है,
पिता कभी अधीर नहीं होता है।
पिता को मैने हुलसते ही देखा है।
पिता कभी गंभीर नहीं होता है।
वह नीली छतरी का वितान होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
जब पिता है, तो हम विस्तार होते हैं।
जब पिता है, तो हमारा अस्तिव है,
जब पिता हैं, तो हम साकार होते हैं,
जब पिता हैं, तो हमारा व्यक्तित्व है।
वह हमारी उपलब्धियों का प्रतिमान होता है,
वह हमारी आकांक्षाओं की उड़ान होता हैं।
वह नीली छतरी का वितान होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
वह चिलचिलाती धूप सहता है,
वह मौसम की मार सहता है।
तूफानों का बिगड़ा रूप सहता है
वह बताश, बयार सहता है।
मजबूत अंगद का पाँव होता है।
पिता बरगद की छाँव होता है।
वह परिवार के लिए ही जीता है।
पिता सब फरमाइशें पूरी करता है
परिवार के लिए हर गम पीता है।
सब कुछ करता, जो जरूरी होता है।
पिता न जाने कहाँ कहाँ होता है,
पिता हमारा सारा जहाँ होता है।
पिता को मैंने हंसते ही देखा है,
पिता कभी अधीर नहीं होता है।
पिता को मैने हुलसते ही देखा है।
पिता कभी गंभीर नहीं होता है।
वह नीली छतरी का वितान होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
जब पिता है, तो हम विस्तार होते हैं।
जब पिता है, तो हमारा अस्तिव है,
जब पिता हैं, तो हम साकार होते हैं,
जब पिता हैं, तो हमारा व्यक्तित्व है।
वह हमारी उपलब्धियों का प्रतिमान होता है,
वह हमारी आकांक्षाओं की उड़ान होता हैं।
वह नीली छतरी का वितान होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
8 comments:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (01जून 2020) को 'ख़बरों की भरमार' (चर्चा अंक 3719 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीय रवींद्र सिंह जी, मेरी इस रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत सुन्दर
आदरणीय ओंकार जी, आत्मीय सराहना के लिए हार्दिक आभार !--ब्रजेन्द्र नाथ
पिता को मैंने हंसते ही देखा है,
पिता कभी अधीर नहीं होता है।
पिता को मैने हुलसते ही देखा है।
पिता कभी गंभीर नहीं होता है।----बहुत खूब ब्रजेन्द्रनाथ जी पिता के लिए इतने गहन विचार ... भावुक कर दिया
वह चिलचिलाती धूप सहता है,
वह मौसम की मार सहता है।
तूफानों का बिगड़ा रूप सहता है
वह बताश, बयार सहता है।
मजबूत अंगद का पाँव होता है।
पिता बरगद की छाँव होता है।.. वाह !पिता को समर्पित लाजवाब सृजन. बहुत बहुत बधाई आदरणीय सर.
आदरणीया अनीता सैनी जी , आपके उत्साहवर्धक उदगार मुझे सृजन की नयी प्रेरणा देते हैं। आपका ह्रदय तल से आभार ! --ब्रजेन्द्र नाथ
आदरणीया अलकनन्दा सिंह जी, आप मेरी रचना पढ़कर भावुक हो गयी, मुझे अपने सृजन सर्वश्रेष्ठ का पुरस्कार मिल गया।आपका ह्रदय तल से आभार ! -- ब्रजेन्द्र नाथ
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