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Wednesday, May 13, 2020

थाम कर हाथ मेरा, देना तुम सहारा (कविता)

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थाम कर हाथ मेरा


थाम कर हाथ मेरा, देना तुम सहारा।
पर्वतों के पार है, कहीं घर हमारा।।

हर एक गम तुम्हारा, हँस के सह लेंगें,
साथ हो तुम तो, तूफानों में चल देंगें।

गर सफल न हों, करना नहीं किनारा।
थाम कर हाथ मेरा, देना तुम सहारा।
पर्वतों के पार है, कहीं घर हमारा।।

पता होगा तुमको कि तुम मेरे क्या हो?
मेरे साथ चंलने का, तुम्हीं आसरा हो।

रखेंगे याद वो पल हमने कभी गुजारा।
थाम कर हाथ मेरा, देना तुम सहारा।
पर्वतों के पार है, कहीं घर हमारा।।

पास होते हो, जिंदगी कटती है खुशी से,
पास हो तुम तो शिकवा नहीं किसी से।

इस जहाँ में कोई तुमसे नहीं है प्यारा।
थाम कर हाथ मेरा, देना तुम सहारा।
पर्वतों के पार है, कहीं घर हमारा।।

साथ में हो तुम तो हमें खुशी है होती,
तुम बिन जीने की चाहत नहीं है होती।

नहीं दोगे साथ तो, कहाँ जाएगा बेचारा?
थाम कर हाथ मेरा, देना तुम सहारा।
पर्वतों के पार है, कहीं घर हमारा।।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

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