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Monday, May 4, 2020

उन दिनों की है बात (कविता) रेडियो पर कविता

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#poemonradio









यह उन दिनों की है बात


रेडियो में बजी शहनाई
बंदे मातरम से होती थी
सुबह की शुरुआत।
भक्ति संगीतोंका कार्यक्रम बन्दना,
उसके पश्चात।
अवगाहन करते भक्ति की सरिता में,
होता था प्रफुल्लित मन और गात।
यह उन दिनों की है बात।

जैसे ही पहुँचते बस्ता लेकर स्कूल,

पाठ तो जाते थे भूल।
बस याद रहता था
आज होगा रेडियो पर,
विद्यालय में समय दोपहर,
अंग्रेजी व्याकरण का प्रसारण,
फिर होता था उसी का मनन।
ऐसे रेडियो से होती रही मुलाकात।
यह उन दिनों की है बात।

रेडियो का बड़ा सा बॉक्स

सिमट कर हो गया ट्रांजिस्टर।
इसे कहीं भी ले जा सकते थे,
घर में, दालान में, खलिहान में,
या कहीं का हो सफर।
विविध भारती से सिनेमा की
गीतों भरी भरी कहानी।
मनपसंद फिल्मी गीतों से
गुलजार रहता रविवार का दोपहर।

फरमाइसें आती थी ज्यादा,

राजनांदगांव, अकोला
और झुमरीतिलैया से,
जैसे सारे संगीतप्रेमी
इन्हीं जगहों में जाकर हों बसे ।

हिंदी समाचार देवकीनंदन पांडे,

शाम को मुखिया जी की चौपाल,
और फाटक बाबा, खदेरन के मदर
लोहा सिंग का भैंसालोटन में धमाल।
बिनाका गीतमाला में अमीन सायनी
क्रिकेट की कमेंट्री,
सुरजीत सेन, विजय हजारे
और बापू नाडकर्णी।
समाचार विवेचन बी बी सी मार्क टली
और बातें ज्ञान विज्ञान की ।

संगीत और गीत की

होली, चैता, बिरहा
और आल्हा की झंकारों में।
बड़ा सुकून देता है,
गुजरते हुए उन गलियारों में।
खोकर रह जाए हम
होती रही यादों की बरसात,
यह उन दिनों की है बात!
यह उन दिनों की है बात!

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

11 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 5 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 5 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

अनीता सैनी said...

वाह! आकाशवाणी के विभिन्न कार्यक्रमों का रोचक वर्णन करती सुंदर रचना. आकाशवाणी के द्वारा एक ज़माने में जनता का भरपूर मनोरंजन किया जाता था.बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय सर.
सादर

Sweta sinha said...

आ.सर,
स्मृतियों के गलियारे से आकाशवाणी के मोती चुनकर शब्दों में
विस्तार से पिरोया है आपने।
अब तो मनोरंजन के उपलब्ध आधुनिक साधनों में रेडियो सचमुच स्मृतियों में ही अंकित है।
सुंदर अभिव्यक्ति।

Marmagya - know the inner self said...

आ श्वेता सिन्हा जी, आपने मेरी इस रचना पर समय दिया और इसपर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दी, इसके लिए ह्रदय तल से आभार!
आप मेरे इस ब्लॉग पर अन्य रचनाएँ भी पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं। -- ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय अनीता सैनी जी, आपने मेरी इस रचना पर सकारात्मक टिप्पणी देकर मेरा उत्साह बढ़ाया है। ऐसा कोई सच्चा साहित्यान्वेषी ही कर सकती है। आपका ह्रदय तल से आभार ! -- ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय ओंकार जी, मेरी रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिए हार्दिक आभार ! --ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...
This comment has been removed by the author.
कविता रावत said...

बस याद बनकर रह जाते वे दिन जिनमें छुपी होती है खुशियां, समय के साथ कितना कुछ बदल जाता है हम बस देखते रह जाते है वेबस, मजबूर से

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया कविता रावत जी, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से अभिभूत हूँ। आपने रचना को आद्योपांत पढ़ा और अपने विचार दिए, मेरे लिए यह एक पुरस्कार की तरह है। कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी अन्य रचनाओं को भी पढ़ें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर आभार! --ब्रजेंद्रनाथ

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