#BnmRachnaWorld
#americatourdiary
04-07-2018, मिड नाइट, 01:15 (पहला दिन)
इतने में करीब 12 बजकर 30 मिनट में रात्रि में घोषणा हुई कि कतार संख्या 40 से 50 तक प्लेन में प्रवेश के लिये आगे बढ़ें।
हमलोग नींद से जगे और एक दूसरे को झकझोर कर जगाये। तब पूरी तरह हावी नीन्द को अनहावी कर सके। मैं जल्दी से कोलकता के अन्तरार्ष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रसाधन का उपयोग करके आया। यह जरूरी था, क्योंकि इस सुविधा के प्रयोग का मूल्य भी टिकट के मूल्य में निहित होता है, इस विचार से नहीं, बल्कि जरूरत के कारण होकर आया। उसी तरफ उंची धार से निकलने वाले झरनेनुमा नल से पेय जल का भी पान किया। हमलोग कोई खाली बड़ी या छोटी बोतल साथ में नहीं रख सके, इसका अफसोस होने लगा। पूरे लाउंज में स्थित दूकानों में शराब की बोतलें नजर आईं, मगर पानी की बोतल उतनी जल्दी कहीं नहीं मिली। खुद को इस आश्वासन के साथ कि प्लेन में तो पीने के लिये बोतलें मिलेगीं, उसी को आगे प्रयोग के लिये रख लिया जायगा, आगे बढ़ चले।
इसके बाद हमलोग गेट संख्या 8 से अन्दर के तरफ घुसे। वहाँ से तिरछी ढलान पर आदम कद गुफा से होकर गुजरने जैसा अनुभव हो रहा था। लेकिन यह गुफा आधुनिकतम विद्युत सज्जा से सुसज्जित था और नीचे कार्पेट भी बिछा हुआ था। मैने दरी के स्थान पर कार्पेट शब्द का खासतौर पर प्रयोग किया, क्योंकि प्लेन में जब धरती से ऊपर उठने की तैयारी कर रहे हों, तो 'दरी' जैसे शब्द को जुबान पर लाकर और प्लेन में साथ ले जाकर देशीपने से क्या बँधकर घुसेन्गें? हमलोगों में यह इच्छा रहती है और अभी यह ट्रेंड जोर पकड़ता जा रहा है, कि जब धरती से उपर उठने की तैयारी होती है, तो देशीपन को एक केंचुल की तरह समझा जाता है, और उतार कर फेंक देने से ही उड़ने का मज़ा आता है। यही नहीं कहीं विदेश या देश में ही किसी जगह प्लेन से उड़कर अगर आये हों, तो और लोगों के सामने इसका कई बार जिक्र करने से नहीं चूकते मसलन 'अपनी अमेरिका यात्रा या फलां जगह जब मैं विमान से नहीं कहकर प्लेन से गया था, तो,,,आगे ब्ला ब्ला,,,। यानि हर वाक्य के आगे या पीछे इस वाक्य को प्रसंगवश या अप्रसांगिक तरीके से भी लगाना नहीं भूलते, ताकि अपनी विशिष्टता को लोगों के सामने प्रमाणित कर सकें। यह एक रोग की तरह अपना फन फैलाते जा रहा है। मेरे एक मित्र हैं। अगर मैने कहा कि फलाँ जगह मैं राजधानी या दुरन्तो जैसे विशिष्ट रेल सेवा से यात्रा की थी, तो वे पहले पूछेन्गें कि किस दर्जे में मैने यात्रा की थी? अगर मैने कहा कि मैं तो थर्ड ए सी में था, तो उनका झट से उत्तर होगा,
"अच्छा, आप थर्ड ए सी से गये थे, मैं तो सेकेन्ड या फर्स्ट ए सी से नीचे यात्रा करता ही नहीं हूँ। "
अगर मैने कहा कि फर्स्ट ए सी से यात्रा की थी, तो वे कहेंगे, "अच्छा, आप सेकण्ड या फर्स्ट ए सी से गये थे, मैं तो प्लेन से ही आता जाता हूँ। "
अगर मैने कहा कि मैं तो प्लेन से वहाँ गया था। तो वे झट से पूछेन्गें, " एकोनोमी क्लास में गये थे या बिसिनेस क्लास में।"
अगर मैने कह दिया कि मैं तो ईकोनॉमी क्लास में गया था।
उनका त्वरित उत्तर होगा, " मैं तो बिसिनेस क्लास में ही आता जाता हूँ।" इसके बाद तो न मेरे पास कुछ कहने को रह जाता और न उनके पास कुछ बढ़ा चढाकर बताने को। कहाँ मैं भी आपको उलझाने लगा। चलिये ले चलता हूँ, कैथे ड्रैगन की उड़ान में। कोलकता से होन्ग्कोन्ग के कैथे पसिफिक उड़ान को कैथे ड्रैगन नाम दिया गया है।
विमान के प्रवेश द्वार पर ओठों पर सुर्खियों सहित मोहक मुस्कान बिखेरतीं विमानआतिथ्य बाला (Air hostess), ने विमान में स्वागत किया। एयर होस्तेस्स के लिये परम्परागत तौर से प्रयुक्त शब्द, विमान परिचारिका की जगह मैने विमान आतिथ्य बाला का प्रयोग किया है। मुझे परिचारिका शब्द पर ही आपत्ति है। परिचारिका शब्द से दासता की भनक आती है। आतिथ्य दासत्व नहीं है। यद्यपि यात्री ऐसा अतिथि होता है , जिसकी तिथि तय होती है, फिर भी वह देव स्वरूप होता है। जब हम अतिथि देवोभव कहते है, तो हम ईश्वर का कार्य ही कर रहे होते हैं। ईश्वर का कार्य करने वाला महान होता है, और उसके लिये दास, दासी या परुचारिका शब्द उसके इस महती भूमिका को छोटा कर देता है। मैने विमान के अन्दर आतिथ्य रत बालाओं के लिये इस शब्द का प्रयोग कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
यह विमान हर कतार में तीन - तीन सीटों की ब्यवस्था सहित एक मध्यम या हो सकता है कि अन्तरार्ष्ट्रीय मानकों के अनुसार कम क्षमता वाला विमान है। अन्दर जाने पर मैने देखा कि हर दस क्षैतिज कतार के बाद एक विमान बाला खड़ी थी। उनके मोहक चेहरे पर करीने से संवारी हुई केश राशि और स्लिम फिट मिडी पर स्कर्ट उसकी पतली कमर और नितम्बों को दर्शनीय बना रही थी। उसकी टाँगें एक अर्ध पारदर्शी लेग्गिन्ग से त्वचा के साथ एकाकार होते हुये, त्वचा के दर्शनार्थ ध्यान आकृष्ट कराने में सफल हो रही थीं। अगर लेगिन्ग पर ध्यान डाला जाय, तो उसे अ - पारदर्शी होते हुये भी उसके आर -पार देखने के लिये अपार- दर्शन की ललक जगा जाता था। सभी बालाएँ चाइनीज़ या मन्गोलियन मूल की थी। विमान के अन्दर पहुंचने पर लगा कि एक लम्बी - सी बस यात्रियों के बैठने का इन्तजार कर रही है। सीट खोजने में कोई दिक्कत नहीं हुयी। साइड में सीटों के ऊपर जहां हैण्ड बैग रखते है, उसी पर सीटों की संख्या भी लिखी थी। धीरे-धीरे पूरा विमान यात्रियों से भर गया। सभी के चेहरों पर हवाई यात्रा की खुशी का रोमांच चेहरे पर नज़र आ रहा था। उनमें से कुछ यात्री बंगाल के परम्परागत पोशाक धोती - कुर्ता और साड़ी में भी थे।
बिमान के उड़ान भरने के पूर्व यात्रियों के स्वागत में घोषणा हुयी। इसके बाद सुरक्षा से सम्बन्धित घोषणा: जैसे आक्सीजन मास्क आपके उपर है। उसे कैसे लगाया जायेगा, उसकी सूचनाएं, सीट बेल्ट कैसे लगाना है, सीट के नीचे लाइफ जैकेट रखा है। ये सारी घोषणाएं अन्ग्रेजी, चाइनीज़ और बंगला में हो रही थी। अन्ग्रेजी का उच्चारण ऐसा था कि कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा था। बंगला में हो रही घोषणा से ही हमलोग समझने की कोशिश में सफल हो रहे थे। विमान अपने पड़ाव स्थान से धीरे-धीरे घूमकर दौड़ पथ (रन वे) पर आ गया। हमलोगों ने अपने-अपने सीट बेल्ट बाँध लिये। ठीक समय यानि 1:15AM पर विमान ने उड़ान भरी। लगता है कि करीब तीन सौ यात्रियों और बिमान परिचारिकाओं और पायलट सहित अन्य कर्मियों के साथ विमान कुछ ही पलों में धरती से ऊपर उठने लगा। बादलों के पार जो कोई संसार है, करीब 35000 फीट और -50 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर , वहां पहुंचकर 550मील प्रति घन्टे की रफ्तार पकड़कर विमान निर्धारित दिशा में, होन्ग कौंग की ओर उड़ चला।
विमान के स्थिर होते ही आतिथ्य में सैंडविच के साथ सलाद और जुस दिया गया। इसके बाद जैसे ही थोडा सुकून जैसा महसूस हुआ कि झपकी आई और गहरी नींद में डूबती चली गयी। कितना समय बीता, इसका भान भी नहीं रहा। पत्नी मध्य सीट पर थी। खिडकी के पास की सीट पर कोई यात्री नही था, इसलिये वे आराम से पैर फैलाकर अधलेटी मुद्रा में विमान यात्रा के आननद में नीन्द को घोलती चली गयी। जब उन्होने खिड़की खोली तो उपर नीला आसमान और सूर्य की रश्मियाँ सीधे विमान के अन्दर आ रही थी। हमें लगा कि अभी ही तो रात में चले थे, ये सुबह कब हो गयी? थोडा मस्तिष्क पर जोर देने से समझ आया कि जब आप पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करेंगें, तो समय आगे की ओर खिसक जायेगा। इसीलिये हमें लगा कि सूर्योदय जल्दी हो गया। बादलों के उपर से सूर्य की फैलती धूप में धरती का नज़ारा विलक्षण था। यहां से देखने पर लगता है कि सृष्टि का विस्तार कितना अपार है। हमलोग अपनी छोटी सी दुनिया को ही संसार मान बैठकर कैसे कैसे भ्रम पाल लेने में अपने अहं को संतुष्ट करते रहते हैं। प्लेन से ली गयी तस्वीरें नयनाभिराम है।
हमलोगों का विमान निर्धारित समय, स्थानीय समय के अनुसार 7:50 AM पर होन्ग कोन्ग के विमान तल पर उतर गया। उतरने के ठीक पहले बेल्ट बांध लेने की घोषणा हुयी थी।
सकुशल उतरने के बाद हमलोग विमान से बाहर निकले।
क्रमशः
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04-07-2018, मिड नाइट, 01:15 (पहला दिन)
हमलोग नींद से जगे और एक दूसरे को झकझोर कर जगाये। तब पूरी तरह हावी नीन्द को अनहावी कर सके। मैं जल्दी से कोलकता के अन्तरार्ष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रसाधन का उपयोग करके आया। यह जरूरी था, क्योंकि इस सुविधा के प्रयोग का मूल्य भी टिकट के मूल्य में निहित होता है, इस विचार से नहीं, बल्कि जरूरत के कारण होकर आया। उसी तरफ उंची धार से निकलने वाले झरनेनुमा नल से पेय जल का भी पान किया। हमलोग कोई खाली बड़ी या छोटी बोतल साथ में नहीं रख सके, इसका अफसोस होने लगा। पूरे लाउंज में स्थित दूकानों में शराब की बोतलें नजर आईं, मगर पानी की बोतल उतनी जल्दी कहीं नहीं मिली। खुद को इस आश्वासन के साथ कि प्लेन में तो पीने के लिये बोतलें मिलेगीं, उसी को आगे प्रयोग के लिये रख लिया जायगा, आगे बढ़ चले।
इसके बाद हमलोग गेट संख्या 8 से अन्दर के तरफ घुसे। वहाँ से तिरछी ढलान पर आदम कद गुफा से होकर गुजरने जैसा अनुभव हो रहा था। लेकिन यह गुफा आधुनिकतम विद्युत सज्जा से सुसज्जित था और नीचे कार्पेट भी बिछा हुआ था। मैने दरी के स्थान पर कार्पेट शब्द का खासतौर पर प्रयोग किया, क्योंकि प्लेन में जब धरती से ऊपर उठने की तैयारी कर रहे हों, तो 'दरी' जैसे शब्द को जुबान पर लाकर और प्लेन में साथ ले जाकर देशीपने से क्या बँधकर घुसेन्गें? हमलोगों में यह इच्छा रहती है और अभी यह ट्रेंड जोर पकड़ता जा रहा है, कि जब धरती से उपर उठने की तैयारी होती है, तो देशीपन को एक केंचुल की तरह समझा जाता है, और उतार कर फेंक देने से ही उड़ने का मज़ा आता है। यही नहीं कहीं विदेश या देश में ही किसी जगह प्लेन से उड़कर अगर आये हों, तो और लोगों के सामने इसका कई बार जिक्र करने से नहीं चूकते मसलन 'अपनी अमेरिका यात्रा या फलां जगह जब मैं विमान से नहीं कहकर प्लेन से गया था, तो,,,आगे ब्ला ब्ला,,,। यानि हर वाक्य के आगे या पीछे इस वाक्य को प्रसंगवश या अप्रसांगिक तरीके से भी लगाना नहीं भूलते, ताकि अपनी विशिष्टता को लोगों के सामने प्रमाणित कर सकें। यह एक रोग की तरह अपना फन फैलाते जा रहा है। मेरे एक मित्र हैं। अगर मैने कहा कि फलाँ जगह मैं राजधानी या दुरन्तो जैसे विशिष्ट रेल सेवा से यात्रा की थी, तो वे पहले पूछेन्गें कि किस दर्जे में मैने यात्रा की थी? अगर मैने कहा कि मैं तो थर्ड ए सी में था, तो उनका झट से उत्तर होगा,
"अच्छा, आप थर्ड ए सी से गये थे, मैं तो सेकेन्ड या फर्स्ट ए सी से नीचे यात्रा करता ही नहीं हूँ। "
अगर मैने कहा कि फर्स्ट ए सी से यात्रा की थी, तो वे कहेंगे, "अच्छा, आप सेकण्ड या फर्स्ट ए सी से गये थे, मैं तो प्लेन से ही आता जाता हूँ। "
अगर मैने कहा कि मैं तो प्लेन से वहाँ गया था। तो वे झट से पूछेन्गें, " एकोनोमी क्लास में गये थे या बिसिनेस क्लास में।"
अगर मैने कह दिया कि मैं तो ईकोनॉमी क्लास में गया था।
उनका त्वरित उत्तर होगा, " मैं तो बिसिनेस क्लास में ही आता जाता हूँ।" इसके बाद तो न मेरे पास कुछ कहने को रह जाता और न उनके पास कुछ बढ़ा चढाकर बताने को। कहाँ मैं भी आपको उलझाने लगा। चलिये ले चलता हूँ, कैथे ड्रैगन की उड़ान में। कोलकता से होन्ग्कोन्ग के कैथे पसिफिक उड़ान को कैथे ड्रैगन नाम दिया गया है।
विमान के प्रवेश द्वार पर ओठों पर सुर्खियों सहित मोहक मुस्कान बिखेरतीं विमानआतिथ्य बाला (Air hostess), ने विमान में स्वागत किया। एयर होस्तेस्स के लिये परम्परागत तौर से प्रयुक्त शब्द, विमान परिचारिका की जगह मैने विमान आतिथ्य बाला का प्रयोग किया है। मुझे परिचारिका शब्द पर ही आपत्ति है। परिचारिका शब्द से दासता की भनक आती है। आतिथ्य दासत्व नहीं है। यद्यपि यात्री ऐसा अतिथि होता है , जिसकी तिथि तय होती है, फिर भी वह देव स्वरूप होता है। जब हम अतिथि देवोभव कहते है, तो हम ईश्वर का कार्य ही कर रहे होते हैं। ईश्वर का कार्य करने वाला महान होता है, और उसके लिये दास, दासी या परुचारिका शब्द उसके इस महती भूमिका को छोटा कर देता है। मैने विमान के अन्दर आतिथ्य रत बालाओं के लिये इस शब्द का प्रयोग कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
यह विमान हर कतार में तीन - तीन सीटों की ब्यवस्था सहित एक मध्यम या हो सकता है कि अन्तरार्ष्ट्रीय मानकों के अनुसार कम क्षमता वाला विमान है। अन्दर जाने पर मैने देखा कि हर दस क्षैतिज कतार के बाद एक विमान बाला खड़ी थी। उनके मोहक चेहरे पर करीने से संवारी हुई केश राशि और स्लिम फिट मिडी पर स्कर्ट उसकी पतली कमर और नितम्बों को दर्शनीय बना रही थी। उसकी टाँगें एक अर्ध पारदर्शी लेग्गिन्ग से त्वचा के साथ एकाकार होते हुये, त्वचा के दर्शनार्थ ध्यान आकृष्ट कराने में सफल हो रही थीं। अगर लेगिन्ग पर ध्यान डाला जाय, तो उसे अ - पारदर्शी होते हुये भी उसके आर -पार देखने के लिये अपार- दर्शन की ललक जगा जाता था। सभी बालाएँ चाइनीज़ या मन्गोलियन मूल की थी। विमान के अन्दर पहुंचने पर लगा कि एक लम्बी - सी बस यात्रियों के बैठने का इन्तजार कर रही है। सीट खोजने में कोई दिक्कत नहीं हुयी। साइड में सीटों के ऊपर जहां हैण्ड बैग रखते है, उसी पर सीटों की संख्या भी लिखी थी। धीरे-धीरे पूरा विमान यात्रियों से भर गया। सभी के चेहरों पर हवाई यात्रा की खुशी का रोमांच चेहरे पर नज़र आ रहा था। उनमें से कुछ यात्री बंगाल के परम्परागत पोशाक धोती - कुर्ता और साड़ी में भी थे।
बिमान के उड़ान भरने के पूर्व यात्रियों के स्वागत में घोषणा हुयी। इसके बाद सुरक्षा से सम्बन्धित घोषणा: जैसे आक्सीजन मास्क आपके उपर है। उसे कैसे लगाया जायेगा, उसकी सूचनाएं, सीट बेल्ट कैसे लगाना है, सीट के नीचे लाइफ जैकेट रखा है। ये सारी घोषणाएं अन्ग्रेजी, चाइनीज़ और बंगला में हो रही थी। अन्ग्रेजी का उच्चारण ऐसा था कि कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा था। बंगला में हो रही घोषणा से ही हमलोग समझने की कोशिश में सफल हो रहे थे। विमान अपने पड़ाव स्थान से धीरे-धीरे घूमकर दौड़ पथ (रन वे) पर आ गया। हमलोगों ने अपने-अपने सीट बेल्ट बाँध लिये। ठीक समय यानि 1:15AM पर विमान ने उड़ान भरी। लगता है कि करीब तीन सौ यात्रियों और बिमान परिचारिकाओं और पायलट सहित अन्य कर्मियों के साथ विमान कुछ ही पलों में धरती से ऊपर उठने लगा। बादलों के पार जो कोई संसार है, करीब 35000 फीट और -50 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर , वहां पहुंचकर 550मील प्रति घन्टे की रफ्तार पकड़कर विमान निर्धारित दिशा में, होन्ग कौंग की ओर उड़ चला।
विमान के स्थिर होते ही आतिथ्य में सैंडविच के साथ सलाद और जुस दिया गया। इसके बाद जैसे ही थोडा सुकून जैसा महसूस हुआ कि झपकी आई और गहरी नींद में डूबती चली गयी। कितना समय बीता, इसका भान भी नहीं रहा। पत्नी मध्य सीट पर थी। खिडकी के पास की सीट पर कोई यात्री नही था, इसलिये वे आराम से पैर फैलाकर अधलेटी मुद्रा में विमान यात्रा के आननद में नीन्द को घोलती चली गयी। जब उन्होने खिड़की खोली तो उपर नीला आसमान और सूर्य की रश्मियाँ सीधे विमान के अन्दर आ रही थी। हमें लगा कि अभी ही तो रात में चले थे, ये सुबह कब हो गयी? थोडा मस्तिष्क पर जोर देने से समझ आया कि जब आप पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करेंगें, तो समय आगे की ओर खिसक जायेगा। इसीलिये हमें लगा कि सूर्योदय जल्दी हो गया। बादलों के उपर से सूर्य की फैलती धूप में धरती का नज़ारा विलक्षण था। यहां से देखने पर लगता है कि सृष्टि का विस्तार कितना अपार है। हमलोग अपनी छोटी सी दुनिया को ही संसार मान बैठकर कैसे कैसे भ्रम पाल लेने में अपने अहं को संतुष्ट करते रहते हैं। प्लेन से ली गयी तस्वीरें नयनाभिराम है।
हमलोगों का विमान निर्धारित समय, स्थानीय समय के अनुसार 7:50 AM पर होन्ग कोन्ग के विमान तल पर उतर गया। उतरने के ठीक पहले बेल्ट बांध लेने की घोषणा हुयी थी।
सकुशल उतरने के बाद हमलोग विमान से बाहर निकले।
क्रमशः
1 comment:
लगता है कि यात्रा के हमसफ़र भी हम ही हैं। बहुत स्पष्ट वृत्तांत!
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