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Saturday, July 14, 2018

गूंज नहीं तुम बनो किसी की (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poetry#motivational


गूँज नहीं तुम बनो किसी की,
खुद की ही आवाज़ बनो तुम।

जो बेबस, लाचार, बंचित हैं,
जिनका सूरज कहीं छुपा है।
प्रभु अवदानों की वारिश से,
नहीं उन्हें इक बूँद मिला है।
उनकी पेशानी पर आये
स्वेद-कणों का अलफ़ाज़ बनो तुम।
खुद की ही आवाज़ बनो तुम।

झंझावातों को पार करो तुम
भंवरजाल से नहीं डरो तुम।
पर्वत शिखर के पार है मंजिल,
कठिन डगर, पर बढ़े चलो तुम।
तोड़ मिथों को आगे बढ़कर
एक नया आगाज़ करो तुम।
खुद की ही आवाज़ बनों तुम।

निपट अकेले, साथ न कोई,
फिर भी जो चल देते हैं।
वे ही चीर चट्टानों को
राह बनाते चलते हैं।
दुनिया के लिए अनुकरणीय
एक नया सरताज बनो तुम।
खुद की ही आवाज़ बनों तुम।

विफलता उसको नहीं डिगाती
कदम बढ़ गए, उस पथ से,
एकाकी जुट जाता प्रयास में,
नहीं मांगता कुछ भी जगत से।
जूझ जाये जो अरि से अभिमन्यु सा
वैसा ही जांबाज़ बनो तुम।
खुद की ही आवाज़ बनो तुम।
-ब्रजेन्दनाथ।
तुलसी भवन के पारिवारिक मिलन समारोह में सुनाई गयी मेरी इस कविता का यूट्यूब लिंक:
https://youtu.be/j3Bz-jNWytg

1 comment:

Lalita Mishra said...

प्रेरणादायक, रगों में विद्युत् का संचार करने वाली कविता!

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