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Sunday, July 1, 2018

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतांत, 29-05-2018, आठवाँ दिन, Day 8 (आगे)

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#tourtojammukashmir

29-05-2018, मंगलवार, आठवाँ दिन, Day 8
आज दोपहर के पहले स्थानीय बाज़ार से कुछ खरीददारी करने का कार्यक्रम था। होटल के द्वारा ही बस का इन्तजाम कर दिया गया। हमलोगों में जिन्हें खरीददारी में रुचि थी, या सामान देखने में रुचि थी, वे बस पर सवार हो गये। मेरी पत्नी भी सवार हो गयी, तो मैं कैसे पीछे रहता। शायद होटल वाले का ही रिटेल आउटलेट होगा या उसी के सम्बन्धी का होगा, "कश्मीर हट" नामक दूकान में हमलोगों को छोड़ दिया गया।
अब देखने, समझने और सम्झाइस बढ़ाने का सिलसिला चला तो चलता ही चला गया। लोग खरीदने के साथ कश्मीर में बनी चीजों को देखने का लाभ उठा रहे थे, और मेरी सोच कुछ दूसरी दिशा पकड़ रही थी।
कितनी अजीब बात है कि सबों को हिन्दु बहुल बाज़ार तो चाहिये लेकिन हिन्दु पडोसी अगर अल्पमत में है, तो उसे उसके जमीन से उखाड़े जाने की धमकी अगर कोई आतंक वादी समूह वैमनस्य फैलाने लिये, नस्लीय सामुहिक नर संहार की धमकी देता हो, तो वे चुपचाप बैठे रहेन्गें। यही सोचकर कि यह मेरे ऊपर तो नहीं बीतने जा रहा है। यही कश्मीर घाटी में नब्बे के दशक में हुआ था। यही हिन्दुओं के साथ पकिस्तान में हुआ और बंगला देश में हुआ। लेकिन यहां सरकार को रोहिन्ग्या के साथ मानवीय चेहरा दिखाने के लिये कहा जाता है। खैर मैं कहाँ आपको यात्रा संस्मरण सुनाते- सुनाते विचारों के वृत्त में उलझा रहा हूँ।
आगे बढते हैं। करीब एक बजे तक खरीददारी का दौर चला। उसके बाद होटल द्वारा दिये गये निर्धारित छोटी बस से वापस होटल आ गये। रास्ते में मैने जम्मु और कश्मीर बैंक के एटीएम से पैसे निकालने गये, तो वह 100रु के नोट ही दे रहा था। उसकी सीमा 4000 रु तक ही थी। उतना ही निकालकर सन्तोष करना पड़ा। खरीददारी का पेमेंट मैन्र कार्ड से किया था। वहीं केसर की दो डिबिया भी खरीदी। दूकान के मालिक ने दो कप कश्मीरी कहवा, जो वे लोग केसर डालकर बनाते हैं, पिलाई। इस पूरे खरीद में आदिल का ब्यवहार प्रशंसनीय रहा। मैने उन्हें अपना विज़िटिंग कार्ड भी दिया।

दोपहर बाद श्रीनगर में स्थानीय मुख्य आकर्षक स्थलों के भ्रमण का कार्यक्रम था।
इसी के तहत हमलोग सबसे पहले चश्मेशाही पहुंचे।
चश्मे साही एक सुन्दर झरने के चारो ओर विकसित बाग है। यहां के झरने ज़बर वान पहाडियों से घिरे जंगलों से नीचे की ओर बहते है और डल झील में समा जाते है। पास ही जम्मु कश्मीर सरकार के गवर्नर का निवास स्थान राजभवन है, इसलिये यहां हमारी बस को एक जगह पर सुरक्षा के चेक से गुजरने के बाद ही उस क्षेत्र में प्रवेश मिल सका।
कहा जाता है की इस झरने की खोज कश्मिरी पण्डितों के साहिब पंथ के एक महिला सन्त रूपा भवानी के द्वारा की गयी थी। रूपा भवानी का पारिवारिक नाम साहिब था। झरना को कश्मीरी में चश्मा कहा जता है। इसलिये झरने का नाम "चश्मे साहिबी" पड़ा जो कालक्रम में बदलकर "चश्मे साही" हो गया।
इसे बाद में मुगल कालीन शासक शाहजहां के काल में यहाँ के उससमय के गवर्नर अली मर्दान खान ने 1632 A D के आसपास इसका सौन्दर्यीकरण किया। शह्जाहां ने इसे अपने सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह को भेंट स्वरूप दिया। उसके बाद से इसका नाम " चश्मे शाही" यानि रॉयल स्प्रिंग पड़ गया। इस बाग के पूर्व में परि महल स्थित है, जहां दारा शिकोह ज्योयिष और और अन्तरिक्ष विज्ञान की बरीकियाँ, कश्मीरी पण्डितों और हिन्दु ज्योतिषाचार्यों से जाना और समझा करते थे। कहा जता है कि इसी परीमहल में औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह की हत्या की थी।
यहां के भूखंड के ढलान ही पानी के बहाव में गति प्रदान करते हैं। सबसे प्रमुख इस बाग में बहता हुआ झरना है जो टेरेस से गुजर कर तीन भागों में बंट जाता है। एक नहर की शक्ल में, दूसरा झरने की शक्ल में और तीसरा फौब्बारे की शक्ल में होता है। पहले टेरेस एक दोमन्ज़िला कश्मीरी हट के डिजाइन का है, जिसमें ईरानी और पारसी कला शिल्प का समन्वय देखा जा सकता है। यहां जल का एकत्रीकरण होता है। यहां से नीचे के तरफ जल चादर की शक्ल में दूसरे टेरेस की तरफ बहता है। दूसरे टेरेस पर जमा किया हुआ जल नीचे के बड़े फौब्बारे को विस्तार प्रदान करता है। इसके बाद बहता हुआ जल तीसरे टेरेस पर जमा होता है। वहां से चादर की शक्ल में बहता हुआ जल चौकोर शक्ल के फौब्बरों को गति प्रदान करता है। यह फौब्बारा प्रवेश द्वार के समीप है। शैलानी दोनो तरफ की सीढियों से होकर उपर चढ़ते हुये फौब्बारों और झरनों का लुत्फ उठाते हुए मुख्य उदगम स्थल यानी प्रथम टेरेस तक पहुंचते है। कहा जता है कि यहां के जल में औषधीय गुण है। इस जल को पहले प्रधान मन्त्री जवाहरलाल नेहरु दिल्ली मंगवाकर पीने मे उपयोग किया करते थे।
यह बाग जिस स्थल पर बस ने हमलोगों को छोड़ा, वहाँ से उंचाई पर है। कई सीढियां चढने के बाद हमलोग झरने और बाग तक पहुच सके। सुन्दर फूलों से सजा बाग और बीच में बहता झरना, हल्की- हल्की हवा के थपेडों में झूमते रंग बिरंगे फूलों की क्यारियाँ और दर्ख्तों पर सफेद मैग्नोलिया के फूल वातावरण को सूफियाना संगीत का अहसास दे रहे थे। एक अध्यात्मिक आनन्द चारो तरफ ब्याप्त लग रहा था।
किसी भी शिला पट्ट पर इस बाग के अन्वेषक का नाम नहीं होना और साथ ही इस बाग को विकसित कर दारा शिकोह को भेंट किये जाने का जिक्र नहीं होना, कुछ अजीब सा लगा। कहीं तो इस बाग का पूरा इतिहास होना चाहिये जो हिन्दु और सूफी संस्कृति के मेल से बनी कश्मीरियत को दर्शाता हो।

क्रमश:

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