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Wednesday, July 18, 2018

अमेरिका यात्रा, होंग कौंग हवाई अड्डे पर, 04-07-2018 (प्रथम दिन आगे)

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04-07-2018, होंग कोन्ग हवाई अड्डे पर लॉस ऐंगल के प्लेन पर चढने तक इन्तजार:

विमान टर्मिनल 1 पर उतर गया था। हमलोग विमान से जैसे ही बाहर निकलकर गुफानुमा रास्ते से बाहर निकल कर एयर पोर्ट के भवन में आये, यहां की विशालता का आभास हो गया। हमलोगों को बिना बाहर निकले दूसरी फ्लाइट का इन्तजार करना था, इसलिये हमलोग ट्रांसफर यात्री के वर्ग में आते हैं। हमें लॉस ऐंगल के फ्लाइट के लिये करीब आठ घन्टे इन्तजार करना था।
होंग कोन्ग अन्तरार्ष्ट्रीय विमान स्थल करीब 1,255 हेक्टेयर (4.85 वर्ग मीटर) में फैला हुआ है। इस एअरपोर्ट पर 90 बोर्डिंग पॉइन्ट हैं। इनमें 78 जेट ब्रिज गेट हैं औरं 12 गेट अस्सेम्ब्ली पॉइन्ट हैं। इस विमान तल को चेक -लैप- कोक एअरपोर्ट भी कहा जाता है। पुराने एअरपोर्ट का नाम काई-टाक एअरपोर्ट था। यह नया एअरपोर्ट 1998 में चालू हुआ था। इसे 1997 में ही ब्रिटेन के द्वारा होन्ग कोन्ग द्वीप को चायना को सौंपे जाने के पहले ही इसे पूरा किया जाना था, लेकिन किसी कारण वश इस प्रोजेक्ट के पूरा होने में विलम्ब हुआ और 1998 में इसे पूरा किया जा सका।
टर्मिनल 1 करीब 5,70,000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ( दुबई और बीजिंग के बाद) टर्मिनल है। इस एअरपोर्ट की काफी जमीन समुद्र से हासिल की हुयी है। यहां कैथे पैसिफिक एयर लाइन्स का हेड क्वार्टर भी है।
मैं अपना बैक पैक लिये हुये पत्नी के साथ इस टरमिनल के इस तल से उस तल पर निरुद्देश्य चलते रहे। यह टर्मिनल 7 लैवल का बना हुआ है। हमलोग पूछते हुये एक स्थान पर पहुंचे जहाँ फ्लाइट के बारे में कुछ सूचनाएँ दी जाती थी। यहाँ E 1 लिखा था। यहाँ पर कैथे पैसिफिक के अतिरिक्त अन्य फ्लाइट के बारे में सूचनाएँ उपलब्ध थीं। वहाँ पूछने पर पता चला कि कैथे पसिफिक के बारे में सूचना E 2 डेस्क पर उपलब्ध थी। मैंने उस डेस्क पर सेवा रत डेस्क बाला से पूछा कि मेरा लॉस ऐंंजल के लिये 4:55 PM में उड़ान है, तो उसके लिये सेक्युरिटी चेक और बोर्डिंग आदि किस गेट पर होगा। मैने अन्ग्रेजी में पूछा था। उसने चायनीज ऐकसेन्ट में जिस तरह से जवाब दिया, उसमें से अन्ग्रेजी के शब्दों को चुनना पड़ा और खुद से अर्थ खोजना पड़ा।
वहां पर करीब 7 घन्टे का ठहराव था, तो हमलोगों को कोई सुविधाजनक कोना ढूढना था, जहाँ से प्रसाधन और पान- साधन (जल पान साधन) दोनों नजदीक हो। एक वैसा ही कोना ढूढकर हम आराम दायक कुर्सी पर विराजमान हो गये। नींद धीरे - धीरे हावी हो रही थी। बस झपकियां ही ले सकते थे। पैर फैलाकर आरामदेह स्थिति प्राप्त करना मुश्किल था।
कहा जाता है कि इतने बड़े विमान विश्रामागार को चलाने और साफ-सफाई पर ध्यान रखने के लिये करीब 65000 लोग काम पर दिन रात लगे रहते है। इतने लोग लगे हैं, इसीलिये यह पूरा स्थल साफ है या इतने लोग अपने काम के प्रति समर्पित ढंग से लगे हैं, इसलिये यह स्थान साफ सुथरा है, यह हमलोग जैसों के लिये, जो अत्यधिक और निरन्तर सफाई देखकर असहज होने लगते हैं, चिन्तनीय विषय हो सकता है, परन्तु यहाँ तो जैसे सबकुछ किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा स्वप्रेरणा से सहज ही सम्पन्न होता दिख रहा था। सफाई के स्तर की तुलना अगर की जाय तो कोलकता का भी हवाई अड्डा कोई कम नहीं था। अब यहाँ पर यह सोचने पर विवश हो जाना पड़ता है कि हमलोग वही भारतीय हैं, जो विमान स्थल को इतनी सुन्दरता से रख रखाव करते हैं। वही अपने शहर, गली, मुहल्ले के रखरखाव पर इतने उदासीन क्यों हो जाते हैं? क्या अंतरराष्ट्रीय अतिथियो के स्वागतार्थ, पलक पांवड़े बिछाये हुये "अतिथि देवोभव" की भवना से ओतप्रोत विमान स्थल को टिप टौप रखना हमें अच्छा लगता है? और वही जब स्वयं जीने के लिये अपने गली, मुहल्ले, शहर में रहना होता है, तो वे सारे मानक ताक पर रख दिये जाते हैं।
हमलोग अपने विश्राम के स्थान पर बनी आरामदेह कुर्सियों पर विराजमान हो गये। रात की कच्ची नींद, झपकियाँ आनी शुरु हो गयीं। इतने में मेरी पत्नी की बगल वाली सीट पर सलवार सूट में एक महिला बैठी। कफ़ी देर तक इन्तजार किया, तो भी उन महिला के साथ किसी पुरुष को नही देखा। अब थोडा आश्चर्य होना स्वाभाविक था। पत्नी ने संवाद स्थापित करने की पहल की। दो भरतीय स्तियाँ अगर पास पास बैठी हो और उनमें अगर कोई संवाद नहीं हो, तो समझ लेना चाहिये कि या तो दोनों गूँगी है, या एक गूँगी और दूसरी बहरी हैं।
स्वभावतः कहां से हैं, से शुरु होकर बच्चे कितने है, कहां-कहां हैं, घर में और कौन- कौन है, और अंत में हस्बेन्ड क्या करते हैं?
तक बातें बढती ही जाती है और खत्म होने का नाम नहीं लेती। मैं भी ये बातें सुन रहा था जो उनमें हो रही थी। वो मोगा पंजाब की थी। न्यू ज़ीलैण्ड से लौट रही थीं। दिल्ली के फ्लाइट का इन्तजार कर रही थी, जो छ: बजे थी। धीरे-धीरे उन्होने अपनी कहानी के बिन्दुओं को सामने लाना शुरु किया, तो मुझे लगा कि हर शख्स की जिन्दगी यहां एक कहानी लिख रही हौ। उन्होने उस समय अपने पति को एक आकस्मिक दुर्घटना में खो दिया था, जब उनके बच्चे छोटे-छोटे थे। क्या किया जाय कुछ समझ नहीं आ रहा था? जब विपत्ति आती है तो रिश्तेदार भी किनारे हो जाते हैं। कोई खबर भी नहीं लेना चाहता, डर से कि ऐसा ना कुछ मांग बैठे। उन्होने अपने को दिलासा दिया, मजबूती दी।
सिलाई का काम शुरु किया। जो कुछ पैसे बचे थे, उससे लुधियाना से सुबह ही स्वयं जाकर सिलाई के सामान खरीदती। लोगों के कपड़े लाती, दिनभर घर का काम करते हुए ही, बच्चों को संभालते हुये सिलाई करती। धीरे-धीरे उनके इस हुनर में निखार आता चला गया। पैसे भी आने शुरु हो गये। पति के हिस्से की प्रॉपर्टी पर जेठ कुन्डली मारकर बैठ गया। उन्होने उसके प्राप्त करने के लिये जरूरी संघर्ष को स्थगित कर किनारे रखा और अपने बच्चों की पढाई पर ध्यान दिया।
बच्चे पढ़ने में अच्छे निकले। बड़ा लड़का चण्डीगढ से आई टी में डिग्री लेकर अभी न्यू ज़ीलैण्ड में कार्यरत है। वहीं से वह आ रही थी। मोगा में अपना बूतिक बना लिया था। सिलाई सिखाने की कक्षायें भी चलाती थी। छोटी बेटी कनाडा में पढाई कर रही थी। इतनी कहानी सुनते-सुनते हमलोगों को उनका नाम पूछना भी याद नहीं रहा। फिर मैने अपना विज़िटिंग कार्ड देते हुये उनका नाम पूछा। किरणबाला नाम था उनका। हमलोगों ने अपना कूकिज उनके साथ साझा किया। इन्तजार का वक्त इतनी संवेदना से ओतप्रोत अनुभवों से गुजरते हुये बीतेगा, सोचा ना था।
(होंग कोन्ग विमान तल पर बिताये गये कुछ और पलों के अनुभवों और वहां से उड़ान भरकर लॉस ऐंगल पहुंचने का वृतान्त अगले पोस्ट में )
क्रमशः 

1 comment:

Lalita Mishra said...

इतना अच्छा वर्णन, लगता है हम भी साथ - साथ भ्रमण का रहे है।

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