#BnmRachnaWorld
#poemonfamine
#poembiharfamine1966
धूप हाँफती,
बंजर में ठहरती, पूछती - सिसकती,
आहें भरती, उच्छ्वासें छोड़ती।
गर्म हवाओं से बातें करती--
ये मौसम तो था,
धरती की गोद में,
हरे - हरे शैशवों की किलकारियों का।
सोच भी नहीं सकती थी,
उतरने को, धरती को छूने को।
...रोक लेते,
बादल, उन्मत्त, पागल.
मिलन के आवेग में।
आँचल में लिपटने को,
आनन्दातिरेक में झूमने को।
खेतों में, बागों में,
मैदानों में, बागानों में,
पहाड़ों पर, चंचल झरनों में,
झीलों में, तालों में,
नहरों में, नालों में।
...लेकिन आज कोई टोकता नहीं,
कोई रोकता भी नहीं।
कहाँ गए बादल, उन्मत्त पागल?
उनका पागलपन कहाँ खो गया?
कहाँ गई वो आसक्ति?
आज क्यों रोकते नहीं?
विरक्त क्यों हो गए?
भागते कहाँ हो?
झूमते क्यों नहीं बागों में?
गाते क्यों नहीं, कजरी के गीत?
यक्ष कहाँ जाएगा?
जिसकी आशा में बैठा है
यहां इस दूरस्थ पर्वत पर?
प्रिया का सन्देशा, कौन ले जाएगा?
...तुम नहीं आओगे,
तो कैसे रचेगा कोई कालिदास,
'मेघदूत'?
कल्पना का पंछी, बादल की खोज में
भटकता – भटकता, इसी बियावान में,
दम तोड़ देगा।
...जरा झांको तो
खेतों की छाती पर फटती बेवाई में,
अगर कोई बूँद नज़र आये
तो मत बरसो, चले जाओ यूं ही,
हम बूँदें बहा लेंगें
तुम्हारी बूँदों की याद में।
सूनी धरती की गोद में,
सूखी धूल की आंधी में।
बिलखते बच्चों को,
याद दिला किलकारियों की,
हँसती, लहलहाती क्यारियों की,
सुला देंगें लम्बी नींद में।
यादों को संजोकर,
कि तुम फिर आओगे,
फिर हरे होंगे, हमारे तन - मन।
धरती होगी सगर्भा,
आँचल होगा नम…
आँचल होगा नम…
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
#poemonfamine
#poembiharfamine1966
बादल से विनती
(यह कविता बिहार में 1966-67 के भीषण अकाल के समय जब मैं दसमी से ग्यारहवीं में गया था, उसी समय लिखी थी।। यही कविता बाद में मेरे स्कूल की पत्रिका और अन्य कई पत्रिकाओं में भी छपी थेी।)धूप हाँफती,
बंजर में ठहरती, पूछती - सिसकती,
आहें भरती, उच्छ्वासें छोड़ती।
गर्म हवाओं से बातें करती--
ये मौसम तो था,
धरती की गोद में,
हरे - हरे शैशवों की किलकारियों का।
सोच भी नहीं सकती थी,
उतरने को, धरती को छूने को।
...रोक लेते,
बादल, उन्मत्त, पागल.
मिलन के आवेग में।
आँचल में लिपटने को,
आनन्दातिरेक में झूमने को।
खेतों में, बागों में,
मैदानों में, बागानों में,
पहाड़ों पर, चंचल झरनों में,
झीलों में, तालों में,
नहरों में, नालों में।
...लेकिन आज कोई टोकता नहीं,
कोई रोकता भी नहीं।
कहाँ गए बादल, उन्मत्त पागल?
उनका पागलपन कहाँ खो गया?
कहाँ गई वो आसक्ति?
आज क्यों रोकते नहीं?
विरक्त क्यों हो गए?
भागते कहाँ हो?
झूमते क्यों नहीं बागों में?
गाते क्यों नहीं, कजरी के गीत?
यक्ष कहाँ जाएगा?
जिसकी आशा में बैठा है
यहां इस दूरस्थ पर्वत पर?
प्रिया का सन्देशा, कौन ले जाएगा?
...तुम नहीं आओगे,
तो कैसे रचेगा कोई कालिदास,
'मेघदूत'?
कल्पना का पंछी, बादल की खोज में
भटकता – भटकता, इसी बियावान में,
दम तोड़ देगा।
...जरा झांको तो
खेतों की छाती पर फटती बेवाई में,
अगर कोई बूँद नज़र आये
तो मत बरसो, चले जाओ यूं ही,
हम बूँदें बहा लेंगें
तुम्हारी बूँदों की याद में।
सूनी धरती की गोद में,
सूखी धूल की आंधी में।
बिलखते बच्चों को,
याद दिला किलकारियों की,
हँसती, लहलहाती क्यारियों की,
सुला देंगें लम्बी नींद में।
यादों को संजोकर,
कि तुम फिर आओगे,
फिर हरे होंगे, हमारे तन - मन।
धरती होगी सगर्भा,
आँचल होगा नम…
आँचल होगा नम…
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
16 comments:
आदरणीया अनिता सैनी जी, शनिवार 23-05-2020 के चर्चा अंक में मेरी इस रचना को स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत सुंदर कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
आदरणीय नितीश तिवारी जी, रचना पर आपके सकारात्मक टिप्पणी से अभिभूत हूँ । आपके ब्लॉग को मैंने अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। मैं अवश्य विजिट करूँगा और ऍबे विचार भी दूंगा। आप भी मेरे ब्लॉग की अन्य रचनाओं पर अपने विचार अवश्य दें। सादर ! --ब्रजेंद्र नाथ
बहुत खूब लिखा है आपने
💐💐💐💐
बहुत ही सुंदर कविता ।
सुन्दर सृजन
बहुत सुंदर कविता।
सुंदर
सुंदर
आदरणीया सुमन कपूर जी, मेरी रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय अखिलश शुक्ला जी, मेरी रचना के लिए आपका अनुमोदन प्राप्त कर अभिभूत हूँ। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी, आपने मेरी रचना पर समय दिया,मेरा उत्साहवर्धन किया, मुझे मेरा पुरस्कार मिल गया। हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
एक नई सोच..आदरणीय, आपने मेरी रचना पढ़कर उसकी सराहना की, इसके लिए आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
तो कैसे रचेगा कोई कालिदास,
'मेघदूत'?
कल्पना का पंछी, बादल की खोज में
भटकता – भटकता, इसी बियावान में,
दम तोड़ देगा।
बहुत ही सुन्दर रचना.
तो कैसे रचेगा कोई कालिदास,
'मेघदूत'?
कल्पना का पंछी, बादल की खोज में
भटकता – भटकता, इसी बियावान में,
दम तोड़ देगा।
बह सुन्दर रचना।
आदरणीया सुधा देवरानी जी, आपने मेरी रचना पर अपने सकारात्मक विचारों से मुझे अभिभूत कर दिया है। आपके जैसी सुधी साहित्यान्वेषी ही ऐसी प्रतिक्रिया दे सकती है।--ब्रजेंद्रनाथ
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