#mahabharatpoem
#mahabharatkekrishn
युद्ध बड़ा भीषण होगा
(अद्भुत रस)
कृष्ण सभा में खड़े हुए,
कौरव सभी थे अड़े हुए।
कृष्ण ने एक सलाह बतायी,
रण रोकने की राह दिखायी।
दे दो पांडवों को गाँव पांच,
तेरे राज्य पर आए न आंच।
दुर्योधन था मद में चूर,
कृष्ण को देख रहा घूर।
प्रस्ताव नहीं उसको भाया,
दुर्योधन अपने पर आया।
पकड़ो भागे नहीं ग्वाल,
चल ना दे ये कोई चाल।
बांध इसे कारा में डालो,
इसकी सारी युक्ति निकालो।
जानता है यह इंद्रजाल,
कर दो इसका बुरा हाल।
कृष्ण का क्रोधानल दीप्त हुआ,
उठी भुजाएं मुख प्रदीप्त हुआ।
उनका प्रकट हुआ विराट रूप,
सभा तपने लगी ज्यों तेज धूप।
सारे सभासद हुए अचम्भित,
भीष्म, द्रोण, भी थे विस्मित।
भुजा उठा, किया उदबोधन,
आ मुझे बांध, तू दुर्योधन।
मैं दिखलाता हूँ परिणाम,
जब युद्ध चलेगा अविराम।
जब लाशें बिछी होंगी सर्वत्र,
ढूढेंगे अपनों को यत्र तत्र।
तुम कहाँ गिरे हो पहचानो
तुम कहाँ पड़े हो अब जानो।
मैं उद्घोष किये जाता हूँ,
गति काल की बतलाता हूँ।
(अद्भुत रस)
कृष्ण सभा में खड़े हुए,
कौरव सभी थे अड़े हुए।
कृष्ण ने एक सलाह बतायी,
रण रोकने की राह दिखायी।
दे दो पांडवों को गाँव पांच,
तेरे राज्य पर आए न आंच।
दुर्योधन था मद में चूर,
कृष्ण को देख रहा घूर।
प्रस्ताव नहीं उसको भाया,
दुर्योधन अपने पर आया।
पकड़ो भागे नहीं ग्वाल,
चल ना दे ये कोई चाल।
बांध इसे कारा में डालो,
इसकी सारी युक्ति निकालो।
जानता है यह इंद्रजाल,
कर दो इसका बुरा हाल।
कृष्ण का क्रोधानल दीप्त हुआ,
उठी भुजाएं मुख प्रदीप्त हुआ।
उनका प्रकट हुआ विराट रूप,
सभा तपने लगी ज्यों तेज धूप।
सारे सभासद हुए अचम्भित,
भीष्म, द्रोण, भी थे विस्मित।
भुजा उठा, किया उदबोधन,
आ मुझे बांध, तू दुर्योधन।
मैं दिखलाता हूँ परिणाम,
जब युद्ध चलेगा अविराम।
जब लाशें बिछी होंगी सर्वत्र,
ढूढेंगे अपनों को यत्र तत्र।
तुम कहाँ गिरे हो पहचानो
तुम कहाँ पड़े हो अब जानो।
मैं उद्घोष किये जाता हूँ,
गति काल की बतलाता हूँ।
महाविनाश जब छायेगा,
तब तू कैसे बच पायेगा?
रणचंडी थाल सजायेगी,
आहुति तेरी पड़ जाएगी।
कौरवों में कोई नहीं होगा,
जो नहीं हुआ, यहीं होगा।
संधि नहीं अब रण होगा,
युद्ध बड़ा भीषण होगा।
तब तू कैसे बच पायेगा?
रणचंडी थाल सजायेगी,
आहुति तेरी पड़ जाएगी।
कौरवों में कोई नहीं होगा,
जो नहीं हुआ, यहीं होगा।
संधि नहीं अब रण होगा,
युद्ध बड़ा भीषण होगा।
आसुरी शक्तियाँ भूलुंठित होंगी,
सद वृत्तियाँ संगठित होंगी।
सत्य सनातन धर्म ही रह जायेगा,
विश्व में शांति पर्व मनाया जाएगा।
शांति पर्व मनाया जायेग।
सद वृत्तियाँ संगठित होंगी।
सत्य सनातन धर्म ही रह जायेगा,
विश्व में शांति पर्व मनाया जाएगा।
शांति पर्व मनाया जायेग।
(महाभारत युद्ध के बात इसकी कल्पना की गई होगी)
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
इस कविता को मैंने मारुति सत्संग, पुणे के वेबिनार में 8 दिसंबर को सुनाया। इसका यूट्यूब वीडियो/ ऑडीयो लिंक मैं दे रहा हूँ:
https://youtu.be/sIgZSmh79ao
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