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Friday, August 24, 2018

अमेरिका डायरी, 18-07 और 19-07-2018, इरवाइन, यु एस ए, 15 वाँ, 16वाँ दिन (Day 15,16)

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18-07-2018, इर्वाईन, यु एस ए, 15वाँ दिन (Day 15)
आज का दिन दो तीन कारणों से खास हो गया।
पहला: आज मैं, पत्नी और लड़के चिन्मय के साथ पास की सड़क के किनारे से होते हुये थोडा दूर पश्चिम-उत्तर की ओर के मनोरम पार्क के तरफ निकल गये। पार्क में चारो ओर हरियाली ब्याप्त थी। इसका एक क्षेत्र पुनर्नवीनिकरण के लिये बंद किया हुआ था। दूसरी तरफ का जो हिस्सा खुला था, उस ओर हमलोग बढ़ चले। जल्बून्द छिड़काव यन्त्र (Sprinkler) द्वारा जल के छिडकाव से घास गीली थी। बिना बारिश के ही, मिट्टी से बारिश के बाद आती सोंधी खुशबू, जिसमें घास की खास महक भी घुली थी, चारो ओर फैल रही थी। सारा वातावरण एक नैसर्गिक आनन्द से भरा था। पाइन पेड़ों के बीच से आती सूर्य की रोशनी, ओक के पत्तों पर ठहर-ठहर जाती थी। उन्हीं के बीच से घास के गुदगुदी गलीचे पर खाली पाँव चला जाय, तो कैसा लग सकता है? इसकी कल्पना से ही मन मौज मे आकर उड़ानें भरने लगता है। सुबह की शुरुआत अगर इतनी आनन्दभरी हो, तो क्या कहा जा सकता है? दिन शुरु हो गया आनंद के विस्फोट के साथ!!!
वहाँ से लौटते हुए, एक पतले पुल से गुजरना हुआ। पुल पैदल चलने वालों और साइकिल चलने वालों के लिये है। पुल के नीचे से (7-7) लेन वाली सड़क पर कारें बेतहाशा दौड़ लगा रही थी। ऊपर स्वर्गिक आनन्द और नीचे कारों पर रफ्तार का मानव-सृजित आनन्द, दोनों का सम्मिलित रूप ही सभ्यता के विकास का तिलस्म है।
दूसरा: आज सुबह के नास्ते में दोसा का आनन्द लिया गया। यहाँ दोसा बनाने की सारी सामग्री स्टोर में उपलब्ध है। बंगलुरु जैसा तैयार बार्टर तो नहीं मिलता, उसे मिश्रित कर तैयार करना पड़ता है। बस घोलने से ही तैयार हो जाता है। स्वाद बिल्कुल मौलिक,,,
तीसरा: आज बेते चिन्मय और बहु दोनो को, 6 बजे, शाम तो नहीं, अपराह्न ही कहा जायेगा, क्योंकि उससमय अपराह्न जैसी ही धूप है, पोते के स्कूल जाना हुआ। हमलोग भी कार में सवार हो गये। वे दोनों स्कूल के अन्दर परेंट्स कौन्सल्लीन्ग के लिये चले गये और मैं और मेरी पत्नी पोते रिषभ को लेकर पास के पार्क में आ गये। वहाँ बच्चों के खेलने की सारी सुविधायें थी। वहीं पर पुणे से आये मनीष से बात हुयी। उनकी पत्नी कौन्सेलिन्ग के लिये गयी थी और वे अपनी बच्ची के साथ यहां पार्क में आ गये थे। उनसे बात करते हुए पता चला कि वे भी उसी कम्पनी के लिये काम करते हैं, जहाँ मेरा लड़का काम करता है।
वहाँ पर पास में जाली से घिरा लॉन टेनिस का मैदान था, जहाँ दो लड़कियाँ, अफ्रीकन या कैरीबियाई मूल की लगी, टेनिस खेलने का अभ्यास कर रही थी। इतने में पार्क की ओर आते एक बुजुर्ग दम्पति पर नजरें पड़ीं। पति का नाम था बिरोली। वे टाटा मोटर्स, पुणे में काम करते थे। टाटा का नाम लेते ही एक जुड़ाव- सा महसूस हुआ, इसलिये मैने भी बातें करनी शुरु कर दी। उन्हें भी यहाँ के जल की ब्तवस्था पर बहुत आश्चर्य हो रहा था। बारिश बिल्कुल कम, फिर भी पानी की कमी नहीं। कैसे कर पाते हैं यह सब, यहाँ के लोग?
इतने में हमने खड़खड़ाती हुई एक चार कोच वाली एक ट्रेन गुजरते हुये देखी। चारो तरफ के हरे-भरे मैदान के बीच रेलवे ट्रैक भी था, इसका पता भी नहीं चलता था। उसी हरीतिमा के बीच से ट्रेन गुजर गयी। यह ट्रेन सिंगल ट्रैक पर, शायद यहाँ से लॉस एंजेलिस तक जाती है। इसके बाद चिन्मय के आने पर उसके साथ उसके ऑफ़िस से होते हुये लौटे।

19-07-2018, इरवाइन, यु एस ए , 16वाँ दिन (Day 16)
आज नाश्ते के बाद जब मैं कैम्पस के अन्दर ही पार्क की ओर निकला, तो एक बुजुर्ग से मिला। वे मिस्टर राव है, अपने लडके के यहाँ आये हुये हैं। वे करीब दस साल पहले ओ एन जी सी (O N G C) से सेवा निवृत्त हुए हैं। वे विशाखापटनम के पास के रहनेवाले हैं। करीब 19 वर्ष तक उन्होने ONGC में अपनी सेवायें दीं। उसके पहले वे भारतीय सेना में थे। उन्होने 1971 की लड़ाई कश्मीर के मोर्चे पर लड़ी थी। वे बताते हैं कि हमलोग 40 मील से अधिक तक पाकिस्तान की सीमा के अन्दर घुस चुके थे। उसी समय यहाँ और पाकिस्तान में फर्क साफ नज़र आता था। पाकिस्तान की सड़कें बदहाल, दूर-दूर तक वीरान खेत, जीवन जैसे वहाँ अन्तिम साँस ले रहा हो।
वहीं दूसरी ओर से शोलापुर, महाराष्ट्र से आये संजीव कुलकर्णी जी से भी बातें हुयीं। वे किसी न्यूज़ पेपर में काम करते थे। हम सबों के बच्चे- बच्चियाँ अच्छी जिन्दगी और अच्छे भविश्य की खोज में तकनीकी लेबर बनने के लिये आ गये हैं। यही आज के समय का बदलता विश्व है। दुनिया समतल है, जबतक ब्रेन का इसतरह माईग्रेशन होता रहेगा। The World is flat till brain is getting migrated like this.
दोपहर में तेलगु से हिन्दी में डब की हुई फिल्म "रुद्रमा देवी" देखी। यह एक सच्ची ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित कुछ नाटकीय तथ्यों को जोड़कर बनाई गयी एक रोचक फिल्म है। आन्ध्र के काकातिया वंश के राजा गनपतिदेव को पुत्र के रूप में एक सन्तान की जरूरत थी जो राजा के बाद साम्राज्य की शासन ब्यवस्था अपने हाथों में लेकर आगे चला सके। यह सम्मुनत राज्यों में से एक था। कहनी 1263 ईस्वी के आसपास की है। राजा को सन्तान के रूप में जब कन्या रत्न की प्राप्ति हुई तो राजा के महल से इसे पुत्र के रूप में प्रचारित किया गया, ताकि प्रजा को यह विश्वास हो जाय कि राज्य को उसका राजा मिल गया है। यह राज बाद में खुलकर सबों के सामने आता है, तबतक रुद्रमा राज काज चलाने में सक्षम बन चुकी होती है। रुद्रमा देवी ने सभी जातियों से योद्धाओं को लेकर एक मजबूत सैन्य संगठन तौयार किया। इसतरह शासन ब्यवस्था और युद्ध कला दोनों में उसने कुशलता हासिल की, विकट परिस्थितियो में कई युद्ध जीते और राज्य की ब्यवस्था को सुदृढ़ किया, जिसकी वीर गाथा अभी तक गायी जाती है।
 क्रमशः 

1 comment:

Lalita Mishra said...

बिना अमेरिका गए ही अमेरिका की यात्रा का लाभ इस वर्णन से प्राप्त कर सकते हैं।

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