#BnmRachnaWorld
#AtalBihariBajpeyi
अटल विहारी बाजपेयी (श्रद्धांजलि स्वरुप)
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूँ।
मैं संसद में नहीं
राजपथ में भी नहीं।
मैं सडकों पर, गलियों में
फूलों में, कलियों में।
नित्य सलिला नदियों में
खेतों में, फलियों में।
मैं राष्ट्र गगन में उड़ता एक परिन्दा हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूँ।
मैं नेताओं जैसी लफ्फाजी में नहीं
राजनीति की जीती हुयी बाजी में भी नहीं।
मैं अक्षरों में, शब्दों में,
वाक्यों में, गीतों में।
मैं हार में, ब्यवहार में,
अरियों में, मीतों में।
सुधा -पत्र का एक पुलिंदा हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूं।
मैं राजनीति के शिखर में नहीं,
मैं कूटनीति के स्वर मे नहीं।
मैं बन्चितों की चीख में,
मैं भिखुओं की भीख में।
मै कतार में खड़े हर उस
अन्तिम आदमी की भूख में।
आज भी शर्मिन्दा हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूं।
मैं विशिष्ट जनों के संघों में नहीं,
मैं परिजनों के स्वयं संघों में नहीं।
मैं कार्यकर्ताओं की ताकत के मूल में हूँ,
रास्ते की कण कण में, धूल में हूँ ।
गुलाबों की रंगत में नहीं, शूल में हूँ।
फलदार पेड़ों की शाखों में नहीं, बबूल में हूँ।
मैं उपवनों में, वनों में वृंदा हूँ।
मैं अटल हूं, मैं जिन्दा हूँ।
-ब्रजेन्दनाथ, इर्वाईन, कैलिफोर्निया, यु एस ए
तिथि: 16-15-2018
(अटल जी के देहावसान पर)
स्थानीय तुलसी भवन में सुनाई गई इसी कविता का यूट्यूब लिंक
https://youtu.be/sj_dGxAxk5E
#AtalBihariBajpeyi
अटल विहारी बाजपेयी (श्रद्धांजलि स्वरुप)
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूँ।
मैं संसद में नहीं
राजपथ में भी नहीं।
मैं सडकों पर, गलियों में
फूलों में, कलियों में।
नित्य सलिला नदियों में
खेतों में, फलियों में।
मैं राष्ट्र गगन में उड़ता एक परिन्दा हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूँ।
मैं नेताओं जैसी लफ्फाजी में नहीं
राजनीति की जीती हुयी बाजी में भी नहीं।
मैं अक्षरों में, शब्दों में,
वाक्यों में, गीतों में।
मैं हार में, ब्यवहार में,
अरियों में, मीतों में।
सुधा -पत्र का एक पुलिंदा हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूं।
मैं राजनीति के शिखर में नहीं,
मैं कूटनीति के स्वर मे नहीं।
मैं बन्चितों की चीख में,
मैं भिखुओं की भीख में।
मै कतार में खड़े हर उस
अन्तिम आदमी की भूख में।
आज भी शर्मिन्दा हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं जिन्दा हूं।
मैं विशिष्ट जनों के संघों में नहीं,
मैं परिजनों के स्वयं संघों में नहीं।
मैं कार्यकर्ताओं की ताकत के मूल में हूँ,
रास्ते की कण कण में, धूल में हूँ ।
गुलाबों की रंगत में नहीं, शूल में हूँ।
फलदार पेड़ों की शाखों में नहीं, बबूल में हूँ।
मैं उपवनों में, वनों में वृंदा हूँ।
मैं अटल हूं, मैं जिन्दा हूँ।
-ब्रजेन्दनाथ, इर्वाईन, कैलिफोर्निया, यु एस ए
तिथि: 16-15-2018
(अटल जी के देहावसान पर)
स्थानीय तुलसी भवन में सुनाई गई इसी कविता का यूट्यूब लिंक
https://youtu.be/sj_dGxAxk5E
1 comment:
अटल जी पर एक सशक्त कविता।
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