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Monday, August 13, 2018

"मुल्क" फिल्म की समीक्षा (लेख)

फिल्म "मुल्क" की समीक्षा:

आज मैनें ये फिल्म देखी। इस फिल्म की पूरी आत्मा कोर्ट के दृश्य में ही है। मुराद अली (ऋषि कपूर) अपने भतीजे का शव लेने से इन्कार कर देता है, क्योंकि वह पुलिस की गोली से मारा जाता है, जब कि उसके एक आतंकवादी वारदात में शामिल होने के पुख्ता सबूत पुलिस के पास थे।
एक सवाल इसमें यही उठाया गया है कि एक परिवार के एक लडके के आतंकवादी साबित होने से क्या पूरा परिवार आतंकवादी घोषित कर दिया जाना चाहिये?
यह सवाल बाद में उठता है, जब वह आतंकवादी वारदात को अंजाम दे चुका होता है। परिवार का कोई लड़का किस गतिविधिं में लिप्त हो रहा है, इसकी जिम्मेवारी भी परिवार की है। क्योंकि उसके कार्यों से परिवार की इज्जत जुड़ी हुई है और प्रभावित भी होती है। इसे भी इस फिल्म में स्थापित करने की कोशिश की गयी है, लेकिन कमजोर तरीके से।
एक सवाल और उठता है- मुल्क को "हम" और "वे "में विभाजित नहीं किया जा सकता। नहीं किया जाना चाहिये, इससे मुल्क की समाजिक मजबूती का धागा कमजोर होता है। कोई भी हम और वे मुल्क को कमजोर करता है। यहां ये भी साबित करने की कोशिश की गयी है कि 1947 में मुल्क के विभाजन के समय हिन्दुस्तान में वे ही रह गये जो अन्दर बाहर से राष्ट्रवादी थे, अपने को प्रतिबद्ध कर लिये थे।
1992 में अयोध्या में विवादत ढांचे के जमीन्दोज़ होने के समय तनाव ग्रस्त माहौल में  मुसलमानों के साथ उनके पड़ोसी हिन्दु भी खड़े थे, यह भी इस फिल्म का एक फ्लश्बैक दृश्य है। अब 1990 जनवरी के उस दृश्य को याद कीजिये जब कश्मीर घाटी के मस्जिदों से हिन्दुओं को घाटी छोडने का एलान किया जा रहा था। बाकी भारत के मस्जिदों से उससमय या उसके बाद कभी भी एक आन्दोलन की तरह यह एलान क्यों नहीं किया गया कि कश्मीर के हिन्दुओं घर मत छोड़ो, देखें कौन तुझे निकालता है? राजनेता चुप हो गये तो कौम भी चुप हो गयी। अब तो जिन्ना की तस्वीर कॉलेजों में लगायी जा रही है। हिन्दुस्तान तेरे टुकड़े होंगे, इंसाँ अल्ला। और तुम एक अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा,,,, वगैरह,!
आज युग की यह मांग है की राष्ट्र को कमजोर करने वाले हर तबके को उजागर किया जाय। आतंकवादी बौर्डर पार कर ही नहीं आता, वह हर ब्यक्ति उसी कटघरे में खड़ा है जो भ्रष्टाचारी है, मिलावटी है, मुनाफखोर और टैक्स चोर है, आततायी और बलात्कारी है, आय से अधिक सम्पत्ति इकट्ठी कर चुका है।
ब्रजेन्द्रनाथ

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